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सुप्रीम कोर्ट में जनता दरबार.

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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कल रात मैंने एक सपना देखा. पहले तो मुझे लगा की मैं कोई फिल्म देख रहा हूँ लेकिन फिर जब गौर फ़रमाया तो पता चला की सुप्रीम कोर्ट में जनता दरबार लगाया गया है. शायद ये पहला एइसा वाकया था जब सुप्रीम कोर्ट में जनता दरबार लगा हो. कटघरे में खरे थे हमारे प्रजातंत्र के प्रवर्तक और हमारे माननीय मंत्रिगन. कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई लेकिन सदन से नेताओं ने वाक आउट करने का मन बन लिया. चीफ जस्टिस ने आदेश सुनाया की जब तक कोर्ट की कार्यवाही ख़तम नहीं होती कोई भी कोर्ट परिसर से बहार नहीं जा सकता. उन्होंने नेताओं को ये साफ़ साफ़ शब्दों में कह दिया की वो संसद भवन में नहीं बैठे हैं. चीफ जस्टिस के सख्त रवैये को देख कर नेतागण मन मसोस कर रह गए और अपने अपने कटघरे में जा कर खड़े हो गए. अब बारी थी प्रश्न काल की और इस बार भारतीय इतिहास में पहली बार ये हक़ जनता को मिला था. जनता तो पिछले ६० वर्षों से इस घडी की प्रतीक्षा कर रही थी. आज वो दिन आखिर आ ही गया जब वो प्रश्न करेंगी और जन प्रतिनिधि जवाब देंगे. जज ने प्रश्न काल शुरू करने को कहा.
जनता: नेता जी आप ये बताइए की आपने एइसा कौन सा काम है जो इन पांच वर्षों में किया है?
(नेता जी पेशोपेश में पड़ गए जब से गद्दी संभाली तब से ले कर अब तक ये शब्द ‘काम’ तो उन्होंने भर्तृहरि की किताब के साथ ही सुना था. दूसरा कोई काम भी होता है, एइसा शब्द और प्रयोग तो उन्हें ज्ञात ही नहीं था)
नेताजी: जी काम्म्म्म…. वो क्या होता है. शब्दकोष में कोई नया शब्द तो नहीं जुड़ा? हमने महंगाई के खिलाफ आवाज़ उठाई है. बंद करवाए हैं. तोड़फोड़ करवाया है. काम तो कोई हमने नहीं किया.
जनता: अच्छा अच्छा. हा हा हा. ये बात तो सभी को ज्ञात है की आपने काम नहीं करवाया है. आपका दूसरा प्रश्न ये है की आपकी सुरक्षा में देश के पैसे क्यूँ व्यर्थ में बर्बाद हों? आप को किस बात का डर है? आप तो जनता के प्रतिनिधि हैं फिर किससे डरते हैं?
(नेताजी को एइसे सवाल की आशा नहीं थी. ये सवाल तो उनके ज़ेहन में दूर दूर तक नहीं था. अब क्या जवाब दे. ये सोचते हुए रुमाल से अपने पसीने को पोछने लगे जो सवाल सुनते ही उनकी शकल और अकल दोनों से आने लगे थे.)
नेताजी: देखिये हम कई एइसे काम करते हैं जिस कारण हमारी जान-माल को खतरा रहता है. और अगर हमें कुछ हो जाए तो फिर देश का कार्यभार कौन संभालेगा? इतने सारे जोखिम के बदले अगर थोड़ी सी सुरक्षा मांगते हैं तो क्या हर्ज़ है?
जनता: नेताजी, एइसा कौनसा काम करते हैं आप की जन प्रतिनिधि होने के बावजूद आपको डर लगता है. डरना तो हमें चाहिए क्यूंकि आतंकियों ने तो कभी किसी नेता को अपना निशाना बनाया नहीं. जब भी उनके आतंक को झेला है आम जनता ने ही झेला है. हमने तो कभी बुलेट प्रूफ कार या यूँ कहें ऑफिस की मांग नहीं की. जिस देश की ७०% आबादी बुख से बेहाल हो वहां आपकी सुरक्षा और आपकी आफियत में अरबों रूपये क्यूँ बर्बाद हो? करते तो आप कुछ हैं नहीं. अरे छोरिये सिर्फ ये ही नहीं कोई आपसे प्रश्न पूछे तो आप सदन से बाहर चले जाते हैं.
खैर छोरिये. आप हमें हमारा काम ही बता दीजिये. ये ही बता दीजिये की हमें क्या करना है? हम काम करें, घर परिवार चलायें, अपने बच्चों को देश का जिम्मेदार नागरिक बनाएं की ये देखें की देश में क्या क्या काम हो रहा है? अभी थोड़े दिन पहले ही आपने कहा था की देश की जिम्मेदारी देश के नागरिकों पर है. अगर देश भी हमारी जिम्मेदार्री है तो आप क्यूँ हैं? इसका निदान तो दो तरह से हो सकता है. एक, या तो आप हमारा काम देखें और हम आपका, या फिर आप अपना काम देखें और हम हमारा. कहिये कौन सा तरीका आसन लगता है आपको?
नेताजी: (नेताजी ने आम जनता से इतने गंभीर प्रश्न की आशा ही नहीं की थी. वो तो हमेशा यही समझाते थे की आम जनता बेवकूफ है. अब इतने कठिन प्रश्न का जवाब वो कैसे देते? सो उनके ह्रदय में पीड़ा हो गयी. और उन्होंने जज से अपने उपचार की मांग की.) जज साहब मेरी तबियत अचानक खराब हो गयी है. क्या मुझे कुछ समय का विराम मिलेगा?
(जज साहब भी तो इस नाटक को कई वर्षों से देखते आ रहे थे. लेकिन वो कर भी क्या सकते हैं. सो उन्होंने कोर्ट दोपहर तक के लिए स्थगित कर दी. दोपहर में फिर से कार्यवाही शुरू हुई.)
नेताजी: आपके सारे प्रश्नों पे हमने गौर किया है. ये मामला हमने सदन में रखा है. जल्द ही इस मामले पर उचित कदम उठाये जायेंगे. आप धैर्य रखिये.
(जनता के साथ तो हमेशा यही होता आया है. जब भी कोई बात उठती है या तो वो सदन में राखी जाती है या विचाराधीन हो जाती है. बेचारी जनता करे भी तो क्या?)
जनता: ठीक है नेताजी, आपकी बात पे हम सहमत तो नहीं है लेकिन आम जनता असहमति जता के भी क्या कर सकती है? भूख से लड़ें या बेरोजगारी से, अपने सर्कार के आतंक से डरें या आतंकियों के आतंक से, अपने बच्चों को देखें या देश और समाज की अपाहिज व्यवस्था को? हम तो जनाब कहीं के नहीं हैं. जज साहब आप ही बताइए? क्या करें हम? हमारे कर्त्तव्य को आप ही समझाइये. हम तो कभी अपने काम में चुक नहीं करते. रोज काम करते हैं और जी तोड़ मेहनत करते हैं. बदले में जो मिलता है उसमे खुश रहते हैं. लेकिन आम जनता क्या करे? कभी महंगाई की चोट से, कभी आतंकियों के बम धमाकों में तो कभी प्राकृतिक आपदा में, लुटते, पिटते और मरते तो हम ही हैं. बाढ़ आये तो घर हमारे बहते हैं, तूफ़ान हमारे ही तो आशियाने उड़ा ले जाता है. कहाँ जाए हम?
(जज साहब भी क्या करते, वो भी तो संविधान में बंधे हैं.)
जज साहब: दोनों पक्षों को गौर से जानने के बाद कोर्ट इस नतीजे पे पहुंची है की नेतागण जनता को हो रही परेशानी के जिम्मेदार हैं. कोर्ट ये आदेश सुनती है की नेतागण जनता के भले के लिए काम शुरू करें. और जनता से कोर्ट माफ़ी मांगती है उनके द्वारा झेले गए परेशानियों के लिए.
इतना सुनना था की मेरी आँख खुल गयी. मैंने पाया की ये एक सपना था. वैसे हुआ सपने में भी कुछ नहीं लेकिन भ्रष्ट नेताओं से दो दो हाथ करने का मौका तो मिला. इसी ख़ुशी के साथ खुश रहना ही तो आम आदमी की किस्मत है?

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