Menu
blogid : 1669 postid : 41

क्या आप अभिभावक हैं?

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
  • 119 Posts
  • 1769 Comments

कल मैं अपने अंग्रेजी वार्तालाप के कक्षा में वार्तालाप में उपयोग होने वाले कुछ नियमों की व्याख्या कर रहा था. १० बजते ही प्रियंका ने कहा की उसका परीक्षाफल आ गया है. मैंने अपने एक समझदार शिष्य को परिणाम जानने के लिए नज़दीक के ही साइबर कैफे जाने को कहा. इस बीच मैं उसे ये समझाने लगा की अगर उम्मीद के अनुरूप अंक न आये हों तो उस विषय मैं ज्यादा चिंता करने की जरुरत नहीं. जीवन में कभी कभी उम्मीद से कम तो कभी कभी उम्मीद से दुगुना भी मिलता है. अगर उम्मीद से कम मिले तो निराश हुए बिना आगे दुगुनी उर्जा से प्रयास करो और अगर उम्मीद से ज्यादा मिले तो इतने खुश मत हो जाना की फिर असफलता बुरी लगने लगे.
मेरे इतना कहते-कहते मेरा शिष्य प्रियंका का परीक्षाफल ले आया. परीक्षाफल में प्रियंका को A2 ग्रेड आया. परिणाम काफी संतोषप्रद लगा मुझे. प्रियंका भी काफी खुश नज़ारा आई. मैंने पूछ लिया “तो उम्मीद से कम या उम्मीद से दुगुना”? उसने हँसते हुए कहा “बिलकुल उम्मीद के अनुसार”.
पापा और मम्मी को ये ख्सुह्खाबरी तो जल्द से जल्द पहुंचानी ही थी. सो उसने पापा के मोबाइल पर कॉल किया. पापा घर पर ही थे. मैंने सोचा की बच्ची का परीक्षाफल सुनते ही ख़ुशी से खुम उठेनेगे और उसे जल्दी घर आने को कहेंगे. उसे ये कहेंगे की, बेटा जल्दी घर आ जाओ पापा अपने बेटे को गले से लगाना चाहते हैं और उसे बधाई और प्रोत्साहन के साथ साथ एक उपहार देना चाहते हैं.
लेकिन प्रियंका के आँखों से बहते हुए आंसुओं ने मेरे मन को विचलित कर दिया. थोड़ी देर तक तो मुझे लगा की पापा के दुलार ने उसकी आँखों में आंसू ला दिए. लेकिन उसके चेहरे के बदलते भावों ने मेरे भ्रम को जल्दी ही तोडा. मैं बात ख़तम होने का इन्तेजार करने लगा. थोड़ी देर बाद कॉल ख़तम हो गयी और वो मासूम चेहरा पीला पद गया. मैंने पूछ ही लिया “क्या हुआ, तुम खुश नहीं लग रागी”?
“सर, पापा खुश नहीं हैं. शर्मा आंटी के बेटे को A1 ग्रेड आया है. पापा कहते हैं की एक ही स्कूल मैं पढाई की और एक जैसी ही सुविधा मिली फिर भी तुम्हे A2 ग्रेड क्यूँ? मैं क्या करूँ सर? मैंने तो पूरी कोशीश की मैं A1 ग्रेड लाऊं. दिन-रात मेहनत की और दो बार तो बीमार होने की वजह से डॉक्टर ने आराम करने की सलाह दी.
उसके टूटते मनोबल को देख कर मझे गुस्सा आना स्वाभाविक ही था. मैंने उसी समय उसके पिता से मिलने का मन बना लिया. कक्षा समाप्त होते हीमैन उसके साथ उसके घर गया. उसने अपने पिता से मेरा परिचय करवाया. वो थोरे परेशां लगे मुझे. मैंने बैठते ही कहा की आप की बच्ची बहुत होनहार और परिश्रमी है. आज उसका परिणाम आया तो मैं आपको बधाई देने चला आया. आपको इस बात की चिंता सता रही है की आपके पडोसी के लड़के को या आपके किसी जानकार के लड़के को आपकी बेटी से अछे ग्रेड आये हैं. क्या आपने कभी ये सोचा की आपको अगर आपके पिताजी ने इसी तरह से डांटा होता तो आप इंजिनियर बने होते? बच्चों का हमेशा उत्साहवर्धन करना चाहिए नाकि उन्हें इस बात के लिए दान्ताना और अपमानित करना चाहिए की वो अमुक बच्चे से अच्छा अंक क्यूँ नहीं ला पाए? हर बच्चे मैं सोचने, समझने और सीखने की अपनी क्षमता होती है. कोई जल्दी सिखाता है तो कोई देर से, कोई लिख के याद करता है तो कोई जोर से पढ़ कर, किसी को गणित से प्यार है तो कोई भाषा का दीवाना है. एइसे में आप अपने सपने उनसे सच क्यूँ करवाना चाहते हैं? उन्हें अपने सपनों के पीछे भागने दीजिये आपके सारे सपने अपनेआप सच हो जायेंगे.
शायद मेरी बातों का उनपे कुछ असर हुआ. तभी तो उन्होंने प्रियंका को गले से लगा लिया और कहने लगे :”मुझे माफ़ कर दो बेटा! मुझसे गलती हो गयी. तू तो मेरा सोना बेटा है. चल मिठाई खाते हैं.”
इस कहानी में तो A2 ग्रेड आया है. मैंने तो कई कहानियां एईसी देखि हैं जहाँ अछे अंक न आने पर बच्चों को जान देनी पड़ी है. मेरा ये प्रश्न है उन सारे पिताओं से जो अपने बच्चों पर अपने सपनों का बोझ डालते हैं, आप के मजबूत कंधे जब आपके सपनों का बोख न उठा सके तो बच्चों के कोमल कंध्धे कैसे उठायेनेगे ये बोझ.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh