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पास के ही बाज़ार में अपनी साइकिल से घुमाते हुए एक अनूठे दुकान को देख कर मेरे कदम रुक गए. दुकान के बोर्ड को देखते ही मैंने मन में सोचा “एइसा कैसे हो सकता है”? दुकान का नाम ‘दूल्हा सेंटर’ था. दुकान के नाम के निचे बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था ‘यहाँ दुल्हे किस्तों पर भी उपलब्ध हैं’. अब एइसे दुकान में जाने का मन किसका नहीं होगा सो मैंने भी साइकिल स्टैंड पर डाली और अपनी जींस ऊपर खिंच कर दुकान के अन्दर दाखिल हो गया.
जैसे ही अन्दर पहुंचा तो एक खुबसूरत हसीना से आँखें चार हुई. नज़दीक पहुंचते ही हसीना ने अपने कातिल निगाहों से मेरी और देखा और कहा “क्यूँ श्रीमान, दूल्हा चाहिए आपको? किसके लिए, अपने लिए? माफ़ कीजियेगा मैं मजाक कर रही थी. जब से दोस्ताना फिल्म देखि है, कभी कभी भ्रम में आ जाती हूँ. हाँ तो में ये पूछ रही थी की क्या आपको दूल्हा चाहिए?”
मेरी तो समझ में कुछ आया नहीं, मैंने कह दिया “हाँ चाहिए तो ज़रूर”.
बस सही दुकान में आये हैं आप, हमारे यहाँ हर किस्म के दुल्हे मिलते हैं. काले, गोरे, लम्बे, चौरे, कमाने वाले, बेरोजगार, शरीफ उचक्के, पुरे बाज़ार में एक यही दुकान है जहाँ आपको हर किस्म के दुल्हे मिलेंगे. आप चाहे तो अपने पसंद के दुल्हे का टेस्ट ड्राइव भी ले सकते हैं. ये ऑफर सिमित समय के लिए है.
उसकी बातें सुन कर में थोडा सोच में पड़ गया. थोडा सोचने के बाद मैंने कहा की “मैडम, मुझे अपनी लड़की की शादी किसी अछे खानदान में करनी है. लड़का एइसा चाहिए जो अच्छा काम करता हो और उसका चरित्र अच्छा हो. मेरी बच्ची पढ़ी लिखी है. बड़े लाड और दुलार से पाला है उसे. बहुत स्वाभिमानी भी है मेरी बच्ची. अंग्रेजी भाषा से M .A किया है मेरी लाडो ने. बस एक समस्या है, दहेज़ के पैसे नहीं हैं मेरे पास.”
मैडम मेरी इस बात से तनिक भी परेशां नहीं हुई. उन्होंने कहा, “कोई बात नहीं. मैंने तो आपसे पहले ही कहा है की हमारी दुकान इलाके की सबसे उम्दा दुकान है. आपके पसंद के लिए एक लड़का है हमारी दुकान पे. इंजिनियर है, अच्छा कमाता है और एकलौता है. आपको दहेज़ की चिंता नहीं करनी है. हमारी दुकान आपका खर्च वहन करेगी. बदले में आपको कुछ नहीं करना है. बस आप अपने ज़मीन जायदाद के कागजात हमारे यहाँ तब तक के लिए छोड़ दीजियेगा जब तक आप हमें दुल्हे के किस्त का भुगतान करेंगे. दूल्हा आपको किस्त में मिल जाएगा. आपको डाउन पेमेंट की चिंता भी नहीं करनी. हमारे नयी स्कीम के तहत हमने डाउन पेमेंट पर रोक लगा दी है.
मैडम की इस बात को सुनकर में बड़ा प्रसन्न हुआ. मैंने सोचा चलो दहेज़ को ख़तम करने के लिए या यूँ कहें की बाप के कन्धों से दहेज़ के भोज को कम करने के लिए इस दुकान का सहयोग प्रशंसनीय है. मुझे तो किसी की शादी करनी नहीं. कोई अगर मिल गया, बेचारा बदनसीब बाप तो उसे इस दुकान पता और फोने नंबर दे दूंगा.
मैं जैसे ही जाने के लिए उठा मैडम ने कहा “जब जा रहे हैं तो आखरी बात भी सुनते जाइए. हमारी कुछ शर्तें हैं. बिके हुए सामान की कोई गारंटी नहीं होगी और बिका हुआ माल वापस नहीं होगा. किस्त बीस भागों मैं बंटा होगा और आपको पहले १५ किस्तों का भुगतान दूल्हा खरीदते वक़्त ही करना होगा. बाकी साड़ी चीजें वैसी की वैसी ही रहेंगी.”
मैंने भी तपाक से कहा “माफ़ कीजियेगा मैडम, मैं मिडल क्लास हूँ, हम पाई- पाई जमा कर के सामान एक बार मैं ही खरीदते हैं. आप अपना दूल्हा अपने पास रखें. पैसे जमा होते ही किसी अछे शोरूम से दूल्हा खरीद लूँगा.”
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