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सोलिड भाई की दुकान से (पात्र-परिचय)

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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आपने मेरे मिछ्ले ब्लॉग मैं सोलिड भाई से साक्षात्कार तो कर ही लिया, आइये अब कुछ नए पत्रों से मिलते हैं जो उस चाय की दुकान की शान हैं. जी हाँ आपके अपने, हमारे अपने, श्रीमान सोलिड भाई.
उनका नाम, हाँ याद आया, ये नाम तो कोई भूल ही नहीं सकता. महंत जी! महंत जी मध्यम ऊंचाई के, काले- कलूटे और शर्ट के अन्दर उनका शरीर हंगर पे लटके शर्ट की खूबसूरती को भी मात देने वाला है. इनके अन्दर एक ही बुरी आदत है, ये शराब बहुत पीते हैं और हमारे यहाँ “शिव जी की बूटी” के नाम से मशहूर, भांग नामक प्राकृतिक संसाधन का उपयोग भी अक्सर करते हैं. इनके अछे इंसान होने का क्या प्रमाण दूँ मैं? काम कोई भी हो, किसी का हो, इन्हें बस इस बात से मतलब होता है की ये किसी तरह उस व्यक्ति की सहायता कर सकें. ये सिर्फ शकल से काले हैं, इनका ह्रदय बिलकुल साफ़ और निश्छल है. वैसे हर व्यक्ति इन्हें अलग-अलग नामों से बुलाता है. कोई इन्हें महन जी कहता है, कोई महान जी कह कर बुलाता है, तो कोई मोहन जी. बेचारे अपने नाम से बड़े परेशां रहते हैं. इनका दिल हमारे पास के थाने की एक थानेदारनी पर आ गया है. महंत जी कहते हैं, उससे ज्यादा खुबसूरत औरत तो मैंने सपने में भी नहीं देखी. आज कल उनके दर्शन के लिए ये थाने के चक्कर लगाते देखे जा सकते हैं. अब इसमें इनका कोई दोष नहीं. जब दिल आया थानेदारनी पर तो परी क्या चीज है? इस प्रेम कहानी की चर्चा हम अगले अंक में करेंगे. आइये महंत जी के एक उपदेश को सुनते हैं साथ ही साथ कुछ और पात्रों से आपका परिचय भी कराया जाए.
एक बार एक श्रीमान चाय पीने के लिए सोलिड भाई की दुकान पर पधारे. उन्होंने चाय का ऑर्डर दिया और बेंच पर पालथी मर कर बैठ गए. उन्होंने कहा की आज अगर वो बिहार में पैदा होने की बजे मुंबई मैं होते तो करोडपति होते. महंत जी को ये बात पसंद नहीं आई. उन्होंने कहा की “ये समस्या आपकी नहीं पुरे देश की है. एक कहानी सुनाना चाहूँगा. एक बार एक संसथान मैं भर्ती के लिए पुरे भारत और अमेरिका से लोगों को बुलाया गया. नौकरी पाने के लिए सारे लोग उपस्थित हुए. पहले भारतीयों को बुलाया गया. सबसे एक ही प्रश्न पूछा गया, आप लेट क्यूँ हुए? किसी ने कहा ट्राफ्फिक जाम था, किसी ने कहा मेरी बस छुट गयी, तो किसी ने कहा की मेरी तबियत थोड़ी ख़राब थी, इस वजह से लेट हो गया. फिर एक अमरीकी से यही प्रश्न पूछा गया. उसने जवाब दिया, मुझे माफ़ कर दें. मैं मानता हूँ मैं लेट हो गया, मेरी गलती है. आगे से एईसी गलती नहीं होगी. उसे वो नौकरी मिल गयी. तो भैया आप भी भारतीय हैं, और हमारी तो पुरानी आदत है, हमारे पास अपने हर समस्या के लिए एक excuse होता है. हम कभी अपनी गलती मानते ही नहीं. अगर अपनी गलती मन कर उसे सुधरने का प्रयास करते तो बिहार में पैदा होने पर आपको पछतावा नहीं होता. खुद को सुधारिए. जग सुधर जाएगा.”
उनके इस वक्तव्य पे वहां मौजूद सारे लोग वाह-वाह कर उठे. अब आइये कुछ और अनूठे चरित्रों से आपका परिचय कराया जाए. एक है टिंकू, सारे लोग उसे टंकी नाम से बुलाते हैं. और लोगों में, अ-ढ, सी.बी.आई, मिथुन उर्फ़ मिन्हास, गोलू बाबु उर्फ़ गिधा, जे.पी भाई और हम तीन दोस्त मैं, चन्दन और केशव. इन पात्रों की महानता अगले ब्लॉग में.

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