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आज की आधुनिक सीता!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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आज मैं औरत के संघर्ष और बलिदान की उस कहानी से आपका परिचय करवाने जा रहा हूँ, जिसके बारे मैं सोचते ही मन गर्व से भर उठता है. वो औरत, जिसने जीवन के हर मोड़ पर स्वयं को अकेला पाया, बिना थके अनवरत, कभी राम के लिए तो कभी जनक की प्रतिष्ठा के लिए, हर अग्निपरीक्षा का सामना ख़ुशी-ख़ुशी किया. जागरण के मंच से जुड़ने से पहले मैंने कभी सुहासिनी के जीवन पर लेख लिखने के बारे में नहीं सोचा था.
मेरा लेखन अधुरा रह जाएगा अगर मैं संघर्ष और बलिदान की इस पर्याय से आपका परिचय न कराऊँ.
कुछ अलग करने की चाह में ट्रेनर की नौकरी छोड़ मैं दरभंगा आ गया. अभी पिछले नवम्बर में ही मैंने अपना एक संसथान स्थापित किया है जहाँ मैं बच्चों को ‘शिक्षा’ देता हूँ. उस वक़्त नया संसथान होने के कारण कम ही एक-दो बच्चे ही थे मेरे संसथान में.
“नमस्ते, सर मेरा नाम सुहासिनी है. मैं नौकरी करना चाहती हूँ. क्या आप मुझे उस लायक बना देंगे”, एक डरे, सहमे और परेशां से चेहरों वाली सुहासिनी ने स्वयं से मेरा परिचय करवाया.
“देखो सुहासिनी, मैं उन शिक्षकों में नहीं जो तुम्हें झूठी तस्सली देकर झांसे देता है. मैं अपने हिस्से के मेहनत के लिए तैयार हूँ. क्या तुम अपने हिस्से की मेहनत के लिए तैयार हो? क्यूंकि मैं मानता हूँ की, बिना मेहनत के कोई कुछ नहीं कर सकता और मेहनत से तो भगवन भी मिलते हैं. फिर नौकरी क्या चीज है.”, मैंने उसके चेहरे को पढ़ने का प्रयास करते हुए कहा.
“मैं दिन-रात मेहनत करुँगी सर. मुझे बस एक छोटी सी नौकरी चाहिए.”, सुहासिनी ने उत्तर दिया.
मैंने उसे अगले सोमवार से दोपहर में आने को कहा. वो ठीक समय पर कक्षा में उपस्थित हुई. मैंने उससे उसका परिचय पूछा. उसने बताया की उसकी शादी हुए ८ वर्ष हो गए हैं और उसके एक बेटा है. बेटे का नाम रोहित बताया उसने. मैंने मन में सोचा, शादी को ८ वर्ष हो गए, दो साल का बेटा भी है, फिर अभी इसे नौकरी की जरुरत क्यूँ पड़ी. बातें करने पर मुझे पता चला की वो दरभंगा शहर के जाने-माने रईसों में एक, सेठ मोतीलाल की बड़ी बेटी है. सेठ मोती लाल का अपना हॉस्पिटल है शहर में. खानदानी रईसों में गिनती होती है उनकी.
सेठ मोतीलाल की बेटी, इस हालत में. मैंने मौन रहना ही उचित समझा. सुहासिनी, अगर मैं मेरे सामने बैठी हुई औरत की बात करूँ तो, मुझे कहीं से भी उसमें कोई ख़ास बात नज़र नहीं आई. सांवला चेहरा, छरहरा बदन, लम्बा कद और डरी-सहमी एक आम औरत लगी मुझे. मैंने उसे साक्षात्कार के तौर-तरीकों की जानकारी देनी शुरू की. इसी दरम्यान उसने मुझे बताया की उसने दसवीं तक की पढाई शहर के सबसे अछे शिक्षण संसथान होलीक्रोस स्कुल से पूरी की.अब वो मुझसे थोडा खुल कर बात करने लगी. उसने मुझे बताया की 12th की परीक्षा मैं उसे ९४% अंक आये थे. इसी अंक के आधार पर उसे मणिपाल के प्रोद्योगिकी संसथान में दाखिला मिला था.

इतनी होनहार लड़की, वो भी अच्छे घर की, इसके हालत ऐसे क्यूँ हो गए? मुझे रात भर नींद नहीं आई. बार-बार सुहासिनी का वो मायूस चेहरा मेरी नज़रों के सामने आ जाता और मेरी आँखें खुल जाती. अगले दिन मैंने निर्णय किया की में सुहासिनी से उसके बीते कल के बारे में पूछूँगा. ऐसी क्या मज़बूरी थी की एक करोडपति की बेटी, एक छोटी सी नौकरी के लिए दर-दर भटक रही थी.
“बुरा न मानो तो मैं तुमसे एक बात पूछूं सुहासिनी”, मैंने अगले दिन उसके आते ही प्रश्न किया.
“जी सर, पूछिये आप शिक्षक हैं मेरे. आपको तो अधिकार है मेरे बारे मैं जानने का”, उसने मेरी तरफ देख कर जवाब दिया.
क्या तुम मुझे बताओगी की तुम हमेशा उदास और मायूस क्यूँ रहती हो? क्या ये मेरा भ्रम है या सच में तुमने अपने ह्रदय के अन्दर कई ग़म छुपा रखे हैं? मुझे ऐसा लगता है की बिना तुम्हारे अतीत को जाने मैं तुम्हारी सहायता सही तरीके से नहीं कर पाऊंगा. पता नहीं क्यूँ, तुम्हारे अतीत में ही तुम्हारी सफलता का राज छुपा हुआ दिख रहा है मुझे. मेरे प्रश्न के बाद और उसके जवाब के पहले की ख़ामोशी ने मुझे इतना तो बता दिया था की मेरा सोचना बिलकुल सही था. उसके ह्रदय में कई द्वन्द चल रहे थे, जिनका समाधान आवश्यक था.
मैं हमेशा से एक तेज़ तर्रार और बुलंद हौसलों वाली लड़की थी. पता नहीं क्यूँ, अपने पिता को फिर भी पसंद नहीं थी मैं. हम दो बहने हैं. मैं और सुषमा. सुषमा हमेशा से पापा की लाडली थी. मुझे कभी इस बात से कोई परेशानी नहीं हुई की पापा सुषमा को ज्यादा पसंद करते हैं. मैंने 10th की परीक्षा पास करने के बाद आगे की पढाई के लिए पटना के वोमेन कॉलेज का चुनाव किया. ये १९९९ की बात है. कॉलेज की पढाई के लिए मैं पटना आ गयी. यहीं मेरी मुलाकात मिहिर से हुई. आपतो जानते ही हैं की मैं दिखने में बिलकुल साधारण हूँ. मिहिर, दुनिया का सबसे हैंडसम लड़का है, कल भी था और आज भी है, मेरे लिए. ये २००० की बात है जब एक दिन कॉलेज से लौटते वक़्त उसने मुझे साथ चलने को कहा. हम अच्छे दोस्त थे इस लिए मुझे साथ जाने में कोई परेशानी नहीं हुई. हम एक अच्छे से रेस्तरां में खाना खाने गए. खाने के बाद मिहिर ने मेरी तरफ देखा और मुझसे पूछा.
“सुहासिनी, में तुम्हें कैसा लगता हूँ”, मुस्कुराते हुए मिहिर ने मुझसे पूछा.
“उम्म्म, एक अच्छे दोस्त.”, बात को समझते हुए भी मैंने नासमझी भरा जवाब दिया.
“मेरा पूछने का मतलब था, क्या मैं तुम्हें पसंद हूँ? मैं तुम्हें तब से पसंद करता हूँ जब से मैंने तुम्हें पहली बार देखा. अब ये मत कहना की तुम तो एक साधारण सी दिखने वाली लड़की हो, फिर मेरे जैसे हैंडसम लड़के का दिल तुमपर कैसे आ गया. आ गया बस. क्या मुझे तुमसे प्यार करने का मौका मिलेगा”, एक सांस में ही सब कुछ कह गया वो.
मैं शायद ये बात कबसे सुनना चाहती थी. मैं भी तो प्यार करती थी उससे. शायद उससे ज्यादा, लेकिन इस बात से डरती थी की कहीं वो मन न करदे. मैंने कहा की मैं उसे तब से प्यार करती हूँ जब से ये धरती है, ये आकाश है और जब से मैं और वो हैं. कई घंटे बीत गए एक दुसरे की आँखों में झांकते हुए. हमारे सुनहरे सपने का अंत वेटर ने आकर किया. हमदोनो वहां से बाहर निकल आये. बातें करते-करते मैं अपने हॉस्टल पहुँच गयी. प्यार जो शुरू हुआ तो फिर हर परिभाषा से आगे, हर स्वप्न से परे, हर मुश्किल से दूर, बढ़ता ही गया. हमदोनों ने मनिपाल में एडमिशन लिया. साथ पढ़ते थे और साथ घूमते थे. दुनिया से बेखबर, अपनी ही मस्ती में हम दो परवाने, प्यार की मुश्किल राहों पर आगे बढ़ते गए.
“सुहासिनी, घरवाले शादी के लिए जिद कर रहे हैं. मैंने उन्हें तुम्हारे बारे में बता दिया है. वो राजी भी हैं. चलो हम शादी कर लेते हैं”, इतनी बड़ी बात बहुत आसानी से कह गया वो.
“ये क्या कह रहे हो मिहिर, तुम तो पापा को जानते हो. अगर उन्हें भनक भी लगी तो मेरी जान ले लेंगे. मुझे अपनी चिंता नहीं, लेकिन वो तुम्हें भी नहीं छोरेंगे. अभी कुछ दिन रुक जाओ.”, मैंने कहा.
“नहीं सुहासिनी, मैं तुम्हारे बिना अब एक पल भी नहीं जी पाऊंगा. प्लीज़ मुझसे शादी करलो”, वो गिडगिडाने लगा.
मैंने भी सोचा एक न एक दिन शादी करनी ही है, अभी ही कर लेते हैं. शायद ये मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी. मिहिर के परिवारवाले आये और हमने कोर्टमैरिज कर लिया. पढाई छोड़ कर मुझे बिच मैं ही वापस आना पड़ा क्यूंकि मिहिर की तबियत अचानक बहुत ख़राब हो गयी. पापा को हमारी शादी की खबर हो गयी. वो मुझे मिहिर के घर से जबरदस्ती ले आये. हर रात मेरा सामना ऐसे प्रश्नों से होता जो असहनीय था मेरे लिए. मैं मौन रही. बार-बार शादी तोड़ने के लिए दवाब बनाया जाने लगा मुझपर. लेकिन मैं तो मोहब्बत करती थी, सच्ची मोहब्बत. हर यातना, हर तकलीफ को बिना बोले सह गयी मैं. बहुत मारा मुझे मेरे पिता ने. उनका क्रोध भी सही था. लेकिन मैं क्या करती, अपने जीवनसाथी को बीच भंवर मैं कैसे छोड़ती?
पापा के घर से भाग कर मैं मिहिर के पास आ गयी. उसने मुझे गले से लगा लिया. और मेरे आंसू पोंछ कर मेरे बालों के सहलाते हुए उसने कहा की, हमने प्यार किया है सुहासिनी. मैं अपराधी नहीं हूँ. मैं मोहब्बत करता हूँ तुमसे. मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूंगा.
इसी प्यार के लिए तो सबकुछ छोड़ आई थी मैं. बहुत खुश हुई मैं. चलो हर चीज लुटाने के बाद प्यार तो मिला. एक अच्छा पति तो मिला. यही तो चाहती है हर औरत. पापा का गुस्सा जब शांत हो जाएगा तो सब ठीक हो जाएगा. दिन बीतते गए. पापा और परिवार के किसी व्यक्ति ने मुझसे फिर कभी बात नहीं की. बहुत दुःख होता था मुझे कभी-कभी. पापा एक बार भी ये देखने को नहीं आये की बेटी कैसी है? प्यार ही तो किया था मैंने. क्या गुनाह किया की पापा इतने नाराज हो गए. इंजीनियरिंग की पढाई बिच में छोड़ने के कारण मिहिर को कहीं अच्छी नौकरी नहीं मिली. बेरोजगारी में घर चलाना मुश्किल हो गया. मिहिर का एक छोटा भाई भी है. मिहिर के मम्मी-पापा भी उससे दूर-दूर ही रहने लगे. मैंने हमेशा उससे कहा. मिहिर, एकदिन सब ठीक हो जाएगा. मुश्किलें हर इंसान की राहों में आते हैं, सिकंदर वही बनता है जो उस मुश्किल का डट कर मुकाबला करे.
मिहिर के मम्मी-पापा ने सौतेला सा व्यव्हार करना शुरू कर दिया हमारे साथ. अब तो खाना खाने के भी पैसे नहीं थे. मिहिर बहुत परेशान रहने लगा.
“सुहासिनी, मैंने तुम्हारी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी. तुम्हें शानो-शौकत से भूख के पास ले आया मैं. मैं पापी हूँ सुहासिनी, मैं पापी हूँ. मैं तुम्हें कोई सुख नहीं दे सका”, इतना कहते ही वो बच्चों की तरह रोने लगा.
नहीं मिहिर, मैं बहुत खुश हूँ. थोड़ी बहुत परेशानी है हमें अभी, लेकिन “तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है, अँधेरे मैं भी मिल रही रौशनी है”. तुम बस मेरे साथ रहना. मुझे दुनिया की कोई और चीज नहीं चाहिए. ऐसे ही मुझे टूट कर प्यार करते रहना, मैं और कुछ न मांगूंगी. हमने किसी तरह अपनी ज़िन्दगी के वो ६ साल बिताये. फिर मिहिर ने अपना बिजनेस शुरू किया. मैंने रोहित को जनम दिया. मिहिर बहुत खुश था रोहित के पहले जन्मदिन पर.
“सुहासिनी, तुमने हर मुश्किल घडी में मेरा साथ दिया. जब मेरे माँ-बाप ने भी मेरा साथ छोड़ दिया तो भी तुम मेरा हाथ थामे मेरे साथ खडी थी. कैसे चुकाऊंगा तुम्हारा ये कर्ज. आइ लव यू सुहासिनी. तुम दुनिया की सबसे अछि पत्नी और दोस्त हो.”, उसकी आँख भर आये ये शब्द कहते कहते.
सब कुछ ठीक चल रहा था. वो पटना में सेटल हो गया और मैं यहाँ दरभंगा में रोहित के साथ खुश थी. नंदिनी, मेरी मामी की लड़की. पटना में ही वोमेन कॉलेज में पढ़ती है. मिहिर वहां रहता था सो वो अक्सर उससे मिलता रहता था. दरभंगा आने पर भी उनकी बात होती थी. मैंने भी जीजा-साली की बातों के बीच में आने की कभी कोशिश नहीं की. धीरे-धीरे मिहिर का व्यव्हार बदलने लगा. वो मुझसे अब दूर-दूर रहने लगा. मेरे सास-ससुर तो पहले से ही मुझे नापसंद करते थे. मैं आजतक ये समझ नहीं पायी की हमारी शादी कैसे करवाई उन्होंने. शायद मेरे पैसों का लोभ था उन्हें. मेरी दोस्त सुकन्या ने मुझे एक दिन बताया की मिहिर और नंदिनी के सम्बन्ध शायद अब नजदीकियों में बदल गए हैं. मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैंने मिहिर से पूछा लेकिन उसने बात टाल दी. आये दिन किसी न किसी बात पे अब वो मुझसे झगडा भी करने लगा. पिछले एक साल से वो दरभंगा भी नहीं आता. मेरी ज़िन्दगी तो कट जायेगी, लेकिन रोहित के बारे में सोच कर मैं परेशान हो गयी. किसके पास जाती, पापा तो ८ साल से दूर हैं मुझसे, बात भी नहीं की उन्होंने. बाज़ार में मुझे देखते ही मुंह घुमा लेते हैं.
मैंने सोचा की मैं अपने बेटे को अपनी गलतियों के कारण बर्बाद नहीं होने दूंगी. मिहिर हमारा ख्याल नहीं रखता तो क्या हुआ? उसकी माँ उसका ख्याल रखेगी. मिहिर के भविष्य के लिए पैसों की आमदनी ज़रूरी थी. मैंने कई लोगों से पूछा की कहीं कोई ट्रेनिंग अगर मिल रही हो जॉब के लिए तो मुझे बताये.

“फिर आप मिले मुझे. सर मैं अपने बेटे को पढाना चाहती हूँ. उसका भविष्य बनाना चाहती हूँ. मुझे दिन-रात मेहनत करनी पड़े, करुँगी. लेकिन मैं अपने बेटे को सफल और अच्छा इंसान बना कर रहूंगी. मैं दिखाना चाहती हूँ इस समाज को की औरत कमजोर नहीं है.”, पहली बार आत्मविश्वास के साथ बोली थी वो.
बेटा तुमने जो कदम उठाया है वो शायद अपनेआप में एक चुनौती है. लेकिन तुम्हारे हौसले को देखते हुए मुझे लगता है की तुम एक आदर्श बनोगी. इस समाज के लिए इस देश के लिए. तुम्हें कौन रोक सकता है, तुम तो जननी हो, पत्नी हो तुम, तुम तो माँ हो. माँ से बड़ा कौन है इस संसार में. मैं हर कोशिश करूँगा तुम्हारी सहायता के लिए. उस दिन से मैं रोज उसे पढ़ने लगा और उसे प्रोत्साहित करने लगा. उसके समर्पण और मेहनत को देख कर मन बहुत खुश होता था.
वाह रे भारत की नारी, अकेली ही परे तू दुनिया पे भारी! सुहासिनी ने मुझे बताया की उसने C P L (commercial pilot licence ) के कोर्स के लिए फॉर्म भरा है. उसे उम्मीद है की उसे सफलता मिल जायेगी.
“सर, मैं सफल हो गयी. मैं अब पायलट बनूँगी. मैं बहुत खुश हूँ. ये सब आपकी वजह से हुआ है. मैं अपने बेटे को वो सब कुछ दे सकती हूँ जो मैं उसे देना चाहती थी. मैंने मिहिर से कह दिया है की तलाक तो मैं उसे नहीं दूंगी लेकिन अब मैं उसके साथ नहीं रहूंगी. मैं खुद के लिए जीना चाहती हूँ, अपने बेटे के लिए जीना चाहती हूँ. अगले महीने मुझे दिल्ली जाना है. फिर फिलिपिन्स जाउंगी और वहीँ से कोर्स पूरा करूंगी”, आँखों मैं आंसुओं की धार लिए वो मुझे अपने सफल होने की बात बता गयी.
मैं बहुत खुश हूँ सुहासिनी. तुमने वो कर दिखाया है जो आज से पहले बहुत कम लोगों ने किया है. तुमने औरतों के मान को बढाया है. भगवन तुम्हारी हर तमन्ना पूरी करे. मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है. हमेशा खुश रहो. मुझसे विदा लेकर सुहासिनी चली गयी. लेकिन जाते-जाते औरत की ऐसी कहानी कह गयी जो इतिहास के पन्नों मैं दर्ज होने लायक थी. Brave girl !

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