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जादूगर चाचा

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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सुनो-सुनो-सुनो, मेरे गाँव में एक जादूगर आया,
टीम-टीम टीम-टीम, काले-पीले
हरे-बैंगनी, कुछ थे नीले
अपने झोले में वो, अजब अनूठी दुनिया लाया

छोटू ने आवाज लगाई, इतने दिन तुम कहाँ रहे थे
हम बच्चों को छोड़ अकेला, चाचा मेरे कहाँ गए थे

मेरे बच्चों, मेरी गुडिया
लाया हूँ जादू की पुडिया
ताजमहल मैं यहाँ बना दूँ
आओ तुमको कुछ नया दिखाऊं

ये दिल्ली का लाल किला है,
ये है कलकत्ता की शान!
ये देखो लखनऊ की रौनक,
और ये है पंजाब की जान!

फिर आऊंगा, कल या परसों,
अभी तो जीना है मुझे बरसों

चाचा-चाचा कह कर बच्चों ने, जादूगर को गले लगाया
बच्चों से ले विदा, बढ़ा वो कहता, अब जाने का समय है आया

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