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लगता है लैला आई है!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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नेता जी ने बल श्रम दिवस पर भाषण की पूरी तयारी कर ली थी. पिछले चुनाव में दिए हुए वायदे उन्हें अब भी याद थे. भले ही उन्होंने उनमे से एक पर भी काम नहीं किया था. समय के आभाव के कारण किये गए वादों को समय पर पूरा नहीं कर पाए थे. ऐसा उनका कहना था. इस बार के चुनाव में जीत होते ही सारे कामों को दुगुनी गति से करने का मन बनाया हुआ था उन्होंने. पड़ोस के ही एक स्कूल से न्योता आया था, बच्चों को संबोधित करने का. नेताजी कैसे चुकते सो उन्होंने ने झट से हाँ कर दी. अपने पढ़े लिखे पी.ए को अपना भाषण तैयार करने के लिए उन्होंने ने दो दिन पहले ही कह दिया था. पिछले दो घंटे से उसी भाषण को याद कर रहे थे. नेताजी का मानना था की देख कर भाषण देने से जनता नाराज हो जाती है सो भाषण कंठस्त कर लिया.
सफ़ेद कुरता और धोती पहन कर अपनी अम्बस्दर कार से वो स्कुल की तरफ चल पड़े. रास्ते में चाय की तलब लगी. ड्राईवर से कहा की किसी अच्छी सी चाय की दुकान पर गाडी रोके. ड्राईवर ने बताया की वो दिल्ली में नहीं हैं. यहाँ कैफे काफी डे जैसे दुकान अभी तक नहीं खुले हैं. नेताजी को भी ध्यान आया की पिछले पांच वर्षों में, कोई विकास का काम तो किया नहीं उन्होंने. नेताजी ने जान-पहचान की एक दुकान पर चाय पीने का मन बनाया. नेता बनने से पहले उस दुकान पर उठना बैठना था उनका.
“एक ठो चाय पिलाईये रामबाबू”, नेताजी ने चाय का आर्डर दिया.
चाय का गिलास लेकर एक १०-११ वर्षीय बच्चा नेताजी के पास आया. टेबल में पैर फंसने के कारण चाय नेताजी के कपड़ो पर गिर गया. बेचारे नेताजी, इस बात को कैसे सेहन कर पाते. उनके सफ़ेद धोती कुरते पर, जहाँ एक भी दाग नहीं था, चाय का पूरा गिलास आ गिरा. अब तो दिल के साथ-साथ कपड़ों में भी दाग लग गया. नेताजी आगबबुला हो गए.
“हरामखोर, दिखता नहीं है का. पूरा कपडावा ख़राब कर दिया. तोहर बाप साफ़ करके देगा.”, बच्चे के बाल को जोर से खींचते हुए नेता जी ने कहा.
बच्चा बेचारा सहम गया. ९० किलो के नेताजी, अगर गिर जाएँ ऊपर तो देहांत हो जाए. दो-चार थप्पड़ ज़माने के बाद ड्राईवर से घर जाकर कपडे लाने को कहा. नेता जी के रूद्र रूप को देख कर बेचारा ड्राईवर भी डर गया. गाडी को हेलीकाप्टर की तरह चलाते हुए वो घर से नेताजी के लिए नए कपडे ले आया. नेताजी कपडे बदल कर, बिना पैसा दिए चल दिए. साथ में रामबाबू को भी ८-१० बड़ी-बड़ी गालियाँ सुनाई. आज तो दिन ही ख़राब है, नेता जी मन ही मन बोले.

किसी तरह भारतीय सभ्यता की लाज बचाते हुए और नेताओं के आदतों का अनुसरण करते हुए, नियत समय से १ घंटा लेट, स्कुल के प्रांगन में नेताजी की गाडी का प्रवेश हुआ. स्कुल में नेताजी के स्वागत के लिए फुल-माला की व्यवस्था थी. स्कुल के प्रिंसिपल ने नेताजी को स्टेज पर मुख्या अतिथि की कुर्सी दी. नेताजी तो कुर्सी पर अधिकार ज़माने के खेल में महारथी थे ही, सो एक अनुभवी कुर्सीधारी की तरह नेताजी ने अपना आसन ग्रहण किया. नेताजी के स्वागत में बच्चों ने स्वागत गान प्रस्तुत किया. प्रिंसिपल ने नेताजी से बच्चों को दो शब्द कहने का आग्रह किया. नेताजी अपनी कुर्सी से उठे बिना ही बच्चों से संबोधित हुए.
“बच्चों, आप भारत का भविष्य हो. हम भारत के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होने देंगे”, नेताजी ने भाषण शुरू किया.
अरे ये क्या! अभी तो भाषण शुरू किया था, अभी इतनी तेज आंधी कहाँ से आ गयी. चारों तरफ धुल ही धुल दिखाई दे रहा था. नेताजी मन ही मन भगवन को कोसने लगे. प्रिंसिपल ने स्कुल के बच्चों को अपनी कक्षाओं में जाने को कहा. सारे बच्चे सही सलामत कक्षाओं में पहुँच गए.
“क्या हुआ प्रिंसिपल साहब”, नेताजी ने प्रिंसिपल से प्रश्न पूछा?

“नेताजी, लगता है लैला आई है. कार्यक्रम स्थगित करना पड़ेगा.”, इतना कह कर प्रिंसिपल साहब बच्चों की खबर लेने चले गए.

तभी किसी के चिल्लाने की आवाज आई. सारे लोग उस और दौड़े. नेताजी के भाषण देने के लिए बने हुए स्टेज के नीचे एक बच्चा दबा कराह रहा था. नेताजी ने पूछा ये बच्चा यहाँ कैसे आया? प्रिंसिपल साहब ने बताया की स्टेज बनाने के लिए जो मजदुर आये थे उनमे से ही एक है ये बच्चा. नेताजी को काटो तो खून नहीं. बच्चे को बाहर निकला गया. बच्चा खून से लथपथ था. बचने की उम्मीद कम थी. नेताजी के फ़ोन करने पर अमबुलंस आई और बच्चे को अस्पताल ले गयी, जहाँ उसकी मौत हो गयी. नेताजी ने स्कुल से निकलते समय मरने वाले बच्चे के परिवार को ५ लाख मुआवजा देने की घोषणा की.
अपने अम्बस्दर में सवार हो नेताजी अगले सभास्थल की तरफ चल दिए.

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