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नभ से एक ज्योति!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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नभ से एक ज्योति,
आई मेरे अंगना,
मन महक गया,
तन चहक गया,
महका घर का कोना-कोना!

बालरूप में शक्ति के दर्शन,
कर मन श्रद्धा से भर आया,
देख के सौंदर्य बचपन का,
नयनों ने अश्रु बहाया!

मन पुलकित हुआ,
मैं द्रवित हृदय से बोला,
विश्व को रचने वाले,
हे महादेव! बम-भोला!
मेरे अंगने में,.
एक पुष्प खिलाकर,
मुझ पर किया बहुत एहसान,
करता हूँ आश्वस्त तुझे मैं,
दिलवाऊंगा इसको हर सम्मान!

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