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दो कहावतें.

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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दुकान से लौटते समय चीनी लाने का आर्डर दिया था श्रीमती जी ने. अब श्रीमती जी की बात न मान कर जंग छेड़ने के लिए मैं राजी नहीं था. सो संजय जी के किराना स्टोर पहुँच गया. संजय जी ने अपनी दूकान पिछले वर्ष ही शुरू की है. नमक से लेकर गमक तक का मिलान रखते हैं अपनी दुकान में. वस्तुओं के दाम में भी कोई हेर-फेर नहीं रखते. मैं क्या मोहल्ले का हर व्यक्ति उन्ही के दुकान से सामान लाता है. मैंने अपनी साइकिल स्टैंड पर डाल कर दुकान में प्रवेश किया. समय तो शाम का था लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के असर से हमारा मोहल्ला भी अछूता नहीं है. दुकान में ग्राहकों के हवा खाने के लिए पंखा तो लगा था, लेकिन अगर सूर्यदेव का दिमाग गरम हो तो उन्हें ठंढा करना हम जैसे मध्यमवर्गीय के बस में कहाँ. मैंने दुकान के काउंटर पर टेकते हुए संजय जी से एक किलो चीनी तौलने को कहा. संजय जी चीनी तौलने लगे और मैं उस खाली समय में दूकान में मौजूद हर सामान के नाम याद करने का प्रयास करने लगा.
“संजय अंकल, एक किलो बेसन दे दीजिये”, १८-१९ वर्षीय संजू ने दुकान पर पहुंचते ही जल्दी में कहा.
संजू हमारे पडोसी मेहता जी का एकलौता बेटा है. बहुत शालीन और सुलझा हुआ नवयुवक है संजू. मुझे प्यार से फ्रेंचकट भैया कहता है. मेहता जी ने एकबार बताया था की संजू यु.पी.एस.सी की परीक्षा के लिए बहुत मेहनत कर रहा है. कुछ दिनों पहले मैंने संजू को बीरबल के साथ देखा था. मैंने उसे पास बुलाकर मना भी किया था की बीरबल के साथ मत रहा करो. वो अच्छा लड़का नहीं है. कुछ दिनों पहले मोटरसाइकिल चोरी करने के जुर्म में पुलिस उसकी तलाश करने हमारे मोहल्ले आई थी. अभी तक वो पकड़ा नहीं गया है. उससे जरा बच कर रहना. मेरे मना करने के बावजूद वो आज दुकान पर बीरबल के साथ ही आया था.
“क्यूँ संजू, घर पर पकोड़े बन रहे हैं क्या? हमें भी ले चलो, गर्म मौसम में गरम पकोड़े खाने का सपना लिए कब से जीवन व्यतीत कर रहे हैं”, संजू को छेड़ते हुए मैंने पूछा?
“बेसन बीरबल का है”, ऐसा कह कर वो चला गया.
उसके बदले हुए अंदाज़ को तुरंत भांप गया मैं. सोचा कहीं गलत संगत एक होनहार नौजवान का भविष्य न उजाड़ दे. चीनी लेकर मैं अपने घर की तरफ चल पड़ा. रास्ते में शर्मा जी अपने कुत्ते को इवनिंग वाक करवाते दिखे. मैंने रुकना उचित नहीं समझा. श्रीमती जी के नाराज़ होने का खतरा था. सोचा घर पर जाकर महाभारत न शुरू हो जाए. श्रीमती जी ने घर समय पर पहुँचने की सख्त हिदायत दी थी. आज हमें मोविप्लानेट में राजनीति देखने जाना था. मन तो मेरा बिलकुल न था. लेकिन क्या करें, जब से रणबीर कपूर फिल्मों में आया है, हमारी श्रीमती जी उसकी फिल्मों की दीवानी हो गयी हैं. मैंने उनसे कहा भी की देश और ऑफिस में क्या कम राजनीति देखता हूँ की तुम मुझे एक तीसरे राजनीति को दिखने ले जा रही हो. ऑफिस में मल्होत्रा जी की राजनीती के कारण तो हमारा प्रमोशन पहले ही रुक गया था. डर था की कहीं रणबीर जी की राजनीती के कारण श्रीमती जी से हाथ न धोना पड़े. रणबीर का बुखार उतारे कहाँ उतर रहा था मैडम के सर से. घर पहुंचते ही मैंने चीनी की थैली श्रीमती जी के हाथ में दी और स्नान करने चला गया.
“और कितनी देर नहाओगे? मैं तैयार हूँ. अब जल्दी भी करो. शो का समय हो गया है.”, गाडी के होर्न से भी तेज आवाज़ ने मेरे कानों को पीड़ा पहुंचाई.
हे भगवन! क्या तू एक और श्रेया घोषाल नहीं भेज सकता था मेरे लिए. जल्दी-जल्दी नहा कर मैं गुसलखाने से बाहर निकला. श्रीमती जी तैयार थीं. मैडम के दमकते यौवन को देखते ही सारी समस्या कम लगी.
मैंने आँख मरते हुए पूछा, “क्यूँ जनाब, आज रणबीर कपूर को परदे से बाहर निकलना है क्या? आज तो कटरीना कैफ लग रही हो, रणबीर को तुमसे प्यार हो गया, तो मेरा क्या होगा”. मैंने मुंह बनाते हुए पूछा?
“आप भी न. रणबीर मेरा पति नहीं है. आप से बढ़कर है क्या कोई इस दुनिया मैं?”, श्रीमती जी ने मेरी प्रशंशा में दो शब्द कहे.

सिनेमाहाल पर काफी भीड़ थी. मुझे लगा की शो हाउसफुल है. मैंने भगवन का शुक्रिया अदा किया और टिकेटकाउंटर की तरफ बढ़ गया. चलते चलते मेरी नज़र गेट की तरफ गयी, जहाँ कुछ पुलिसवाले दिखाई दिए. पहले तो मुझे लगा की भीड़ ज्यादा होने के कारण वो अपना शक्तिप्रदर्शन करने के लिए बुलाये गए हैं. लेकिन कुछ ज्यादा ही संख्या में मौजूद पुलिस को देख कर मन आशंकित हो गया. श्रीमतीजी को वेटिंगरूम में पहले ही बिठा आया था, सो मन की जिज्ञासा शांत करना सरल हो गया. भीड़ को चीरते मैं पुलिस की भीड़ के पास पहुंचा.
ये क्या! खून से लथपथ चार लाशों को घेड़े कई वर्दीधारी चेहरों को देख मैं डर गया. अपने मनोस्थिति पे काबू पाते हुए मैंने पास खड़े एक व्यक्ति से घटना के विषय में पूछा. उसने बताया की पिछले महीने कबिलपुर मोहल्ले से चोरी हुए मोटरसाइकिल के लुटेरों के गिरोह को लोगों ने पीट-पीट कर मार डाला. मोटरसाइकिल चोरी की बात आते ही मन आशंकित हो गया. बीरबल भी तो अभियुक्तों में से एक था. संजू की अच्छी दोस्ती हो गयी थी उसके साथ. इतना सोचते-सोचते मेरी नज़र पीले टी-शर्ट पहने एक नवयुवक की लाश पर पड़ी. संजू, हे भगवन! अनर्थ!
“मैं इस लड़के को पहचानता हूँ. ये बहुत ही शरीफ परिवर का बच्चा था. थानेदार साहब, ये चोरी नहीं कर सकता. अभियुक्तों का मित्र है ये, लेकिन चोर, ये चोर नहीं है.”, इतना कहते-कहते मेरी आँखों में आंसू आ गए.
मैंने तुरंत मेहता जी को फोने कर बुला लिया. तबतक श्रीमती जी भी आ गयी थीं वहां. संजू की लाश को देखते ही फुट-फुट कर रो पड़े मेहता जी. मैं अवाक हो उस दृश्य को देख रहा था. मेरी आँखों के सामने दो कहावतें चरितार्थ होती दिख रहीं थी. “संगत से गुण होत है, संगत से गुण जात”, “इंसान को अगर जानवर बनाना हो तो उसे हक़ से ज्यादा ताकत दे दो”, दोनों बातों की सच्चाई की जीताजागता उदहारण मेरी आँखों के सामने था. बीरबल के संग ने तो संजू की जान ली ही थी, जनता ने अपने अधिकार का दुरूपयोग भी किया था. दोषी को सजा देने के लिए तो कानून है ही फिर कानून अपने हाथ क्यूँ लिया जाए? जाने-अनजाने एक निर्दोष की हत्या करना क्या न्याय के साथ जनता द्वारा किया गया एक क्रूर मजाक नहीं?

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