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मेरे सात वर्ष @ बी.पी.ओ!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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मैंने कई बार सोचा की क्या लिखूं कैसे लिखूं? वैसे तो जागरण के इस मंच से जुड़ने का कारन मुझे भी आज तक ज्ञात नहीं हो पाया. हाँ, एक पुरानी कहावत ‘जो होता है अच्छे के लिए होता है’, को मानते हुए जुड़ा, तो बस एक नए प्रेमी की तरह अपनी नयी प्रेमिका को नए-नए प्रलोभन दे उसका दिल जीतने की कोशिश में जी जान से जुट गया. मेरा प्रेम हिंदी से कभी नहीं था. मैं धन्यवाद देना चाहूँगा, हिंदी के समर के रचियेता, दैनिक जागरण को, जिसने मेरे जैसे अंग्रेजी साहित्य के दीवाने को हिंदी के रंग में डुबो दिया.
१२वी की परीक्षा पास कर मैं दिल्ली चला गया. परिवार की आर्थिक स्थिति हिंदी की तरह ही थी, सब कुछ होते हुए भी कुछ न था. इसे मेरा भाग्य कहिये या ब्रह्मा द्वारा मेरे लिए चुना गया जीवन. कुछ कोशिशों के बाद, एक छोटे से काल-सेंटर में नौकरी मिल गयी मुझे. दिन बीतते गए और मेरा प्रयास जारी रहा. एक के बाद एक मैंने हर उस बी.पी.ओ में काम किया जो आज भी टॉप-टेन की लिस्ट में अग्रणी हैं. बी.पी.ओ का वातावरण, आपके अन्दर मौजूद अंग्रेजी भाषा के कीड़े के लिए , बिलकुल अनुकूल है. यहाँ आप अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजों के नए-नए तौर-तरीके सीखते हैं. मैं भी अंग्रेजी के रंग मैं रंग गया. अंग्रेजी बोलना, अंग्रेजी पढना और अंग्रेजी फिल्में देखना, मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया. मुझे याद नहीं की बी.पी.ओ इंडस्ट्री में जाने के बाद मैंने कभी किसी हिंदी फिल्म की चर्चा की होगी. इसके दो कारण थे, पहला की बी.पी.ओ इंडस्ट्री में हिंदी के प्रयोग पर पाबंदी है, और दूसरा की भाई हम भी तो ये साबित करना चाहते थे की हमें भी अंग्रेजी आती है.

इतना ही नहीं, हमारी इंडस्ट्री में इस बात का भी पूरा-पूरा ख्याल रखा जाता था की आप अंग्रेजी जीवन जीने की कला सीखें. हमारे जागरण के मंच पर तो एक ही भगवन बाबु हैं जो ‘जीने की कला’ सिखाते हैं. लेकिन हमारे बी.पी.ओ इंडस्ट्री में आपको ‘अंग्रेजी जीवन जीने की कला’ सिखाने वाले कई भगवन बाबु मिल जायेंगे. इसे हिंदी का दुर्भाग्य ही कहेंगे की ६० करोड़ वक्ता होने के बावजूद आपके पास एक ही भगवान बाबु हैं. डिस्को-पब, मल्टीप्लेक्स, शराब और शबाब, इन चीजों को तो हम आज भी मिस करते हैं. सोमवार से शुक्रवार तक काम करना, फिर शनिवार को देर रात पार्टी करना, रविवार का दिन हमने आराम करने के लिए फिक्स कर दिया था. शनिवार की रात ही पीकर इतना नाचते थे की रविवार को तो उठने की भी हिम्मत न होती थी. अकेले रहते थे, सो रोकने-टोकने वाला भी कोई न था. छुट का पूरा-पूरा फायदा उठाया हमने, अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी जीवन का छोटा से छोटा पहलु भी अछूता नहीं था हमसे.
अपने सात साल के बी.पी.ओ की ज़िन्दगी के दौरान एक बात बहुत खटकी हमें. हमारी ट्रेनिंग के दौरान हमें, उस देश की साड़ी चीजें; जैसे की भाषा, पहनावा, लोकप्रिय स्थल, बड़े-बड़े नेता आदि के बारे में जानकारी दी जाती थी, जिस देश की कंपनी के लिए हम काम करते थे. कहा जाता था की, अंग्रेज अपनी भाषा और अपने प्रदेश को लेकर काफी सजग हैं. ये बात हमें सदा ही खटकती थी. हम भारतियों में इस बात की भारी कमी है, हमारे अन्दर एक बहुत बुरी आदत है, हम दूसरों को जानने का प्रयास तो करते हैं लेकिन अपने स्वरुप के दर्शन हम शायद ही कभी करते हैं. बी.प.ओ में कार्य करने वाले लोगों को, भले ही भारत के महान व्यक्तियों की जानकारी न हो- अमेरिकी राष्ट्रपतियों के नाम वो ऊँगली पे गिन देंगे. भारत के दर्शनीय स्थल के नाम भले ही उन्हें न याद हों, लासवेगास के हर कैसिनो और गलियों के नाम उन्हें कंठस्त हैं. कभी-कभी ये सारी बातें दिल को बहुत दुखती थी. लेकिन हम कर भी क्या सकते थे, पेट का सवाल था. भारत सरकार ने अगर हमारी चिंता की होती तो आज हम इस अप्रत्यक्ष गुलामी से बच जाते.
खैर, जब आपने बी.पी.ओ के बारे में इतनी जानकारी ले ही ली, तो कुछ और भी सुनते जाइए. भारतवर्ष में आज २५लाख से ज्यादा बी.पी.ओ कर्मचारी हैं. और जहाँ तक मैं जानता हूँ अपने इंडस्ट्री को, कोई भी अपना जीवन नहीं जी रहा. अंग्रेजियत के दौड़ में अपने आपको खोकर, बेखबर सोने वाले ये नवयुवक अगर सही दिशा में काम करें, तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की भारत की विकास गति दोगुनी हो जायेगी. ये बात मैं संख्या के लिहाज़ से नहीं कह रहा अपितु बी.पी.ओ में काम करने वाले लोगों की दक्षता और क्षमता, जिसे मैंने काफी नज़दीक से देखा है, को ध्यान में रख कर कह रहा हूँ. जिनमे काबिलियत है बलवा लाने की वो १२-१५ हजार की नौकरी करते हैं. रात भर काम करते हैं और दिन को सोते हैं. प्रकृति के नियमों के प्रतिकूल काम को कर भी अगर वो जीवित हैं और आगे बढ़ रहे हैं तो ये हमारी जिम्मेदारी है की हम उनके समक्ष ऐसे मौके प्रस्तुत करें जिससे उनके मार्गदर्शन के साथ-साथ देश का भी विकास हो.

हमारा भारतवर्ष एक गुलिश्तां है फूलों का, जहाँ हर तरह के फूल हैं. “बर्बाद गुलिश्तां करने को, बस एक ही उल्लू काफी है. बर्बाद गुलिश्तां क्या होगा, जहाँ डाल डाल पर उल्लू हैं”, ये पंक्तियाँ बी.पी.ओ के दुष्प्रभाव को दिखने के लिए काफी हैं. और अगर आप चाहें तो इन पंक्तियों को हर स्थिति से जोड़ सकते हैं, हमेशा सच ही लगेंगे ये.

जय हिंद, जय भारत!

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