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बाबूजी को जुकाम हो हो गया. जुकाम भी ऐसा की ख़तम होने का नाम नहीं. माँ बहुत परेशान हो गयीं. पड़ोस के डाक्टर गुप्ता की दवाई से कुछ असर नहीं हुआ. बाबूजी को लेकर मैं शहर के सबसे बड़े अस्पताल पहुंचा. भीड़ काफी थी अस्पताल में. हम अपनी बारी आने का इंतजार करने लगे. डाक्टर साहब अभी तक नहीं आये थे. मैंने नर्स से डाक्टर साहब के लेट होने का कारन पूछा. नर्स ने बताया की डाक्टर साहब प्राइवेट क्लिनिक के मरीजों को देखते हुए अस्पताल आते हैं. इच्छा तो हुई की कुछ कहूँ, लेकिन नर्स को कुछ बोलना अनुचित था. काफी लम्बे इंतजार के बाद डाक्टर साहब के दर्शन हुए. अहो भाग्य हमारे, जो आप पधारे; सोचते हुए हम डाक्टर साहब के पास बाबूजी को लेकर चल पड़े. डाक्टर साहब ने चेक-अप करने का बाद पुर्जी पर दवाई लिख दी और हमें बाहर इंतजार करने को कहा.
“मेरा बच्चा! मेरा बच्चा कहाँ है डाक्टर बाबु”, गंदे और फटे पुराने कपड़ों में एक स्त्री चीख-चीख कर पूछ रही थी.
हमें दाल में कुछ काला नजर आया. घटना की जानकारी लेने के लिए हम उस औरत की तरफ चल पड़े.. हमने नर्स से औरत के चीखने-चिल्लाने का कारण पूछा. नर्स ने हमें बताया की चीखने वाली स्त्री प्रसूता है. उसके जो बच्चा हुआ वो मरा हुआ पैदा हुआ. अस्पताल के कर्मचारी महिला को ये बात समझाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन महिला थी जो इस बात को मानने से इंकार कर रही थी. नर्स के इतना कहते-कहते, प्रसूता महिला के परिवार के लोग भी आ गए और वो कर्मचारियों से बहस करने लगे. बहस ऐसी छिड़ी की एकबार तो हमें लगा कहीं हम संसद भवन में तो खड़े नहीं हैं. पुरे अस्पताल के लोग वहां इकठ्ठा हो गए. इस बात की भनक शायद आस-पास के लोगों को भी लग गयी थी. अस्पताल अब भारत की बढ़ती आबादी का जीवंत उदहारण नज़र आने लगा.
“ये बच्चा चोर अस्पताल है. इन्होने बच्चे को बेच दिया है. बच्चा वापस करो”, भीड़ में से आवाज आई.
एक बार नारा बुलंद होने की देर थी. बच्चा चोरी होने की बात आते ही अस्पताल का माहौल एकाएक गर्म होने लगा. हम आज तक ये नहीं समझ पाए की ऐसी घटनाओं की खबर राजनितिक पार्टियों को कैसे हो जाती है? हमने अभी ठीक से पूरी समस्या को समझा भी नहीं था की अपने दल-बल के साथ युवा राजनैतिक पार्टी के सदस्य, हाथों में झंडा और पोस्टर लिए, अस्पताल के बाहर धरने पर बैठ गए.
“बच्चे को वापस करो! वरना परिणाम बुरा होगा. युवा अब कर्तव्यों से विमुख नहीं है”, जैसे कुछ नारे मेरी कानों तक पहुँचने लगे.
इतने में अस्पताल अधीक्षक आये. मारो-मारो करते हुए लोग अधीक्षक की तरफ लपके. मैंने लोगों को रोका और अधीक्षक के पास जाकर घटना की सफाई मांगी. अधीक्षक ने कहा की महिला के बच्चा तो हुआ लेकिन जीवित नहीं मृत. काफी हंगामे के बीच मैं और अधीक्षक महोदय उनके ऑफिस के अन्दर दाखिल हुए.
“श्रीमान, बच्चा तो हुआ है लेकिन इन्सान का नहीं लोमड़ी का. हंगामा होने के डर से हमने बच्चे को छुपा दिया”, अधीक्षक महोदय ने सच्चाई बयां करते हुए कहा.
“हंगामा तो इस बात का है की बच्चा कहाँ है? आप लोगों को जाकर साफ़ शब्दों में सच्चाई बता दें”, मैंने उन्हें समझाते हुए कहा.
लगता है मेरी बातों का कुछ असर हुआ था उनपर. वो बाहर आये और भीड़ को संबोधित करते हुए कहा की महिला ने बच्चे को जनम तो दिया है, लेकिन बच्चा इंसान का नहीं है. मैंने मन ही मन कहा, चलो अच्छा है, एक इन्सान तो कम हुआ धरती से. लोगों के पूछने पर अधीक्षक महोदय ने सच्चाई बताई. महिला को उसका बच्चा वापस मिल गया. इन्सान के बच्चे के बदले लोमड़ी के बच्चे को देखते ही महिला मूर्छित हो गयी. बच्चे को गोद में लिए, वहीँ गिर परी. जब तक लोग उसके पास आये,. महिला ने प्राण त्याग दिए. हम्न्गामा ख़तम हुआ और लोग अपने-अपने घरों को लौट गए. मैं भी बाबूजी को लेकर वापस आ गया.
एक इन्सान ने लोमड़ी के बच्चे को जनम दिया. ये बात पुरे शहर में आग की तरह फ़ैल गयी. अगले दिन अख़बार के मुख्यपृष्ठ पर खबर आई. “एक औरत ने लोमड़ी के बच्चे को जनम दिया”. मैंने सोचा, “क्या ये पहला वाकया है जब इन्सान ने इन्सान की जगह लोमड़ी को जनम दिया? लाखों लोमड़ी और भेरिये इंसान के वेश में कहाँ से आये”?
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