मन बहुत आहत है और विचलित भी. क्रोधित भी हूँ. लेकिन बापू के पढाये पाठ को अभी तक नहीं भुला हूँ. इसीलिए मैंने सोचा की जब बापू ही कह के गए हैं, जब आप किसी के बात से सहमत न हों और आपको लगे की गलत हुआ है, तो आवाज़ उठाइए.उनका अनुशरण करने वाला मैं कैसे चुप रहता. मैंने शुरू तो किया पढना ‘जागरण पर गधे क्यूँ’ से लेकिन फिर, भारतीय साहित्य के महानायक द्वारा रचित, दुसरे पुरानों को भी पढ़े बिना मन नहीं माना. वैसे तो इनकी रचना मैंने इससे पहले कभी नहीं पढ़ी थी, क्यूंकि राजकमलजी द्वारा लिखित एक ब्लॉग मैं उन्होंने इन्हें एक स्थापित उपन्यासकार बताया था. चूँकि आधुनिक युग के उपन्यासकारों के उपन्यास मेरी पसंद नहीं हैं सो मैंने इन्हें कभी नहीं पढ़ा. आज अचानक जागरण के होमपेज पर उनकी प्रतिक्रिया देख कर मैं उन्हें पढने को उत्सुक हो गया. पढ़ा शुरुआत बहुत अच्छी रही, लेकिन अंत बहुत ही दुखद और दंभ में भरे हुए शब्दों के साथ हुआ. मैं इसलिए आहत नहीं हूँ की इन्होने जागरण के लेखकों को गधा कहा, जिन लोगों को इन्होने गधा कहा उनमें से एक मैं, सच मैं गधा हूँ. मुझे साहित्य का जरा भी ज्ञान नहीं. आजतक पहली कक्षा लेकर प्रतिष्ठा करने तक मैंने हिंदी विषय की पढाई नहीं की. तो मैं तो गधा हूँ ही. लेकिन इस मंच पर कई ऐसे रचयिता हैं जिन्हें साहित्य की बहुत गहरी समझ है और वो सृजनकर्ता हैं. इनके सारे पुरानों को पढ़ने के बाद, मन और भी दुखी हो गया. काश इतने प्रशंशक हमारे नागार्जुन बाबा को मिले होते तो आज साहित्य का ये हाल नहीं होता. काश मेरे प्रेमचंद को भी कोई पढ़ता तो आज उनके बच्चे यूँ गुमनाम न होते. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जब मैं सक्सेना साहब का ब्लॉग पढ़ रहा था. वहां भी श्रीमान, पूजनीय बच्चन साहब पर ऊँगली उठाते दिखे. शायद बड़े और महान लोगों पर प्रहार करना इनकी आदत में शुमार है. इसीलिए बाबा रामदेव को भी निशाना बनाया इन्होने. मैं योग का विद्यार्थी नहीं हूँ, न ही बाबा रामदेव मेरे गुरु हैं. बाबा रामदेव के सौ अवगुण हो सकते हैं, ऐसा मानता हूँ मैं. लेकिन योग और आयुर्वेद में उनके अतुलनीय योगदान को नाकारा नहीं जा सकता. इन्होने पतंजलि योग केंद्र की बात की. हमारे छोटे से शहर मैं भी है यह केंद्र. यहाँ के लोगों के पास न धन है, न पहुँच, फिर भी उनका उपचार किया जाता है वहां. मैं फिर से अपनी बात दोहराना चाहूँगा. आपके एक खट्टे अनुभव को आप अगर स्वयं तक सीमित रखते हैं तो ये आपकी महानता है. लेकिन आपके एक खट्टे अनुभव को अगर आप अपने शब्दों की जादूगरी से लोगों तक पहुंचाते हैं तो इससे कई भ्रांतियां पैदा हो जाती हैं. आपका पतंजलि योग का अनुभव बुरा हो सकता है. लेकिन आपके अलावा हिंदुस्तान की १०० करोड़ आबादी बेवकूफ है ऐसा साबित करना कहीं से श्रेष्ठता नहीं है. हाँ मैं गधा हूँ, क्यूंकि मुझमे गलत को सहने की शक्ति नहीं. किस मी और किल में, बहुत अच्छा टोपिक है. बहुत लोकप्रिय भी. लोगों को इसका बेसब्री से इन्तेजार है. मैं भी इन्तेजार करता, अगर भारत के विदर्भ की कहानी का चित्रण किया होता इन्होने.ये मेरा निजी मत है. आप उपन्यासकार हैं, अच्छा लगा सुनकर, इश्वर से प्रार्थना करूँगा की आपको उन्नत्ति मिले. लेकिन दंभ में आकर लोगों को नीचा दिखाना छोड़, साहित्य के सृजन में ध्यान लगायें तो शायद अगली बार आप पर कोई उंगली नहीं उठाएगा.
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