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अंजू को इंसाफ दो(लघु-कथा)

मैं कवि नहीं हूँ!
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बलात्कार विषय पर मेरा ये दूसरा लेख है. मेरे जागरण के ही एक मित्र, श्री मनोज जी ने मेरे पिछले लेख वर्दी वाले गुंडे, पर मुझे इस विषय पर दुबारा लिखने को प्रोत्साहित किया. मेरे मष्तिष्क ने एक और बार कल्पना की, एक कहानी के रूप में. मेरी कहानी कल्पनामात्र है, इसका किसी व्यक्ति और स्थान से कोई वास्ता नहीं.

कबड्डी खेलना, दोस्तों संग बातें करना और पापा की गोद में सर रख कर, पापा से जीवन के संघर्ष की कहानियां सुनना; अंजू के दिनचर्या के अभिन्न अंग थे. बचपन से ही कबड्डी के लगाव ने आज अंजू को राष्ट्रीय स्तर का खिलाडी बना दिया था. पोलो मैदान में दोस्तों संग कबड्डी खेलने का उसका शौक, आज उसे चंडीगढ़ तक ले आया था. अंजू बिहार कबड्डी टीम की कप्तान है. सारी लड़कियां अंजू को अंजू दीदी कह क़र बुलाती हैं. परसों कबड्डी का फ़ाइनल है, अंजू अपनी टीम के साथ रणनिति तय करने में जुटी है. अंजू के कोच, भार्गव बाबु, अंजू को बेटी की तरह मानते हैं. अंजू उनके बहुत करीब है. शाम हो आया था, भार्गव बाबु ने जीत के मंत्र को देते हुए, लड़कियों से घूम टहल आने को कहा. ‘नेकी और पूछ-पूछ’, लड़कियां तो कब से चंडीगढ़ शहर घूमने की तमन्ना दिल में दबाये बैठी थीं.

अंजू और राधा, एक साथ बाज़ार घूमने निकल गयी. बाकी लड़कियां अपने झुण्ड मैं थीं. दोनों घुमते-घुमते चंडीगढ़ की हसीं वादियों को निहारती, स्टेडियम से काफी दूर निकल आई थी.

“राधा, चंडीगढ़ कितना प्यारा शहर है. लगता है, भगवन विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से इसे बनाया है.”,

“सुन काफी देर हो गयी है, ८ बज गया. चल स्टेडियम वापस चलते हैं”…

वापस जाने के लिए अभी वो मुड़ी ही थीं की तीन-चार चमचमाती गाड़ियों ने उन्हें घेर लिया. राधा घबरा कर अंजू के पीछे चली गयी. गाड़ियों से कुछ लड़के बाहर निकले. अंजू के पास आते हुए एक लड़के ने उससे उसका नाम और पता पूछा. अंजू ने अपनी घबराहट छिपाते हुए उसके प्रश्नों का उत्तर दिया. लड़के के मुंह से आ रही शराब की बदबू ने अंजू को आनेवाले खतरे के लिए आगाह कर दिया.

“आइये हम आपको स्टेडियम तक छोड़ देते हैं”, उस लड़के ने लडखडाती आवाज़ में कहा.

“रहने दीजिये, हम चले जायेंगे. आप कष्ट क्यूँ उठाएंगे”, अंजू ने जवाब दिया.

“अबे बातें क्या कर रहा है, डाल गाडी में दोनों को. “, पीछे से किसी ने कहा.

दो अकेली लड़कियां कबतक मुकाबला करती, मजबूत मर्दों का. उन्होंने जबरदस्ती दोनों को गाडी के अन्दर ठूंस दिया. गाडी चंडीगढ़ की सुनसान सड़कों पर दौड़ लगाती रही. करीब २ घंटे के बाद स्टेडियम के गेट के बाहर एक कार आकर रुकी. राधा और अंजू को धक्के देकर बाहर फेंका किसीने और फिर कार तेज रफ़्तार में आगे निकल गयी. लड़कियां और भार्गव बाबु , अंजू और राधा का ही इन्तेजार कर रहे थे. जबतक दौड़कर बाहर आये, कार उनकी नज़रों से ओझल हो गया. सामने दो अधमरे शरीर को देख कर सभी अवाक हो गए. चीथारों में लिपटे दो लाशों की तरह अंजू और राधा का शरीर उनकी आँखों के सामने था.

झुक कर दोनों की नब्ज़ टटोलते हुए उन्होंने डॉक्टर को बुलाने के लिए लड़कियों को चिल्ला कर कहा.

हॉस्पिटल के बेड पर लेटी राधा, अपने शरीर की पीड़ा तो भूल गयी थी लेकिन उसके ह्रदय और उसके मस्तिष्क पर जो ज़ख्म दिया था इस बलात्कार ने, उसे चाह कर भी भूल नहीं पा रही थी. उधर अंजू, घृणा और प्रतिशोध की आग में जल रही थी. क्या गुनाह किया था उसने लड़की बन कर. अपने दो मिनट के मज़े के लिए कैसे कोई किसी की अस्मिता को ताड-ताड़ कर सकता है? ऐसे वेहशी अगर समाज में रहे तो फिर हर रोज, किसी बेटी का, किसी माँ का या किसी बच्ची का बलात्कार होता रहेगा. नहीं, वो उन्हें यूँही नहीं छोड़ेगी. उन्हें उनके किये की सजा दिला कर रहेगी.

“ये अंजू और राधा तो थीं ही ऐसी. क्या ज़रूरत थी रात में घूमने की. इनका भी मन होगा. बाद में कोई लफड़ा हुआ होगा इसी कारण ये सब हुआ”, लड़कियां बाहर बातें कर रही थी.

हॉस्पिटल के स्टाफ भी आपस में अंजू और राधा के चरित्र पर कीचड़ उछालने से नहीं चुके.

उधर, भार्गव बाबु, सबकी बातें सुन रहे थे. क्या हो गया है इस समाज को? जब जरुरत है, अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाने की तो लोग एक असहाय लड़की पर ही दोषारोपण कर रहे हैं. नहीं-नहीं, मैं दोषियों को सजा दिलवा के रहूँगा. राधा और अंजू मेरे साथ आये थे. उनकी जिम्मेदारी मुझपर थी, उनके साथ हुए अत्याचार में, मैं भी भागीदार हूँ. मैंने अगर उनका साथ न दिया, तो क्या मैं बलात्कारी नहीं कहलाऊंगा? क्या उनके अहम् और सम्मान का बलात्कार नहीं करूँगा मैं?

राधा मन में कुंठा से ग्रसित हो पलकें भिंगोये जा रही थी. अब क्या मुंह दिखाउंगी मैं लोगों को, लोग जो पहले से ही इन्सान से हैवान बनते जा रहे हैं, उन्हें तो बस मौका चाहिए? मैं वो मौका कैसे दे सकती हूँ समाज के ठेदारों को? इन बातों को सोचते-सोचते राधा बेहोश हो गयी.

तबतक पुलिस भी वहां आ गयी थी. पुलिस ने अंजू से जाकर घटना के विषय में पूछा. अंजू ने गाडी का नंबर और लड़कों का हुलिया पुलिस को बताया. साथ ही उन्हें जल्द से जल्द पकड़ने की गुहार भी लगायी. अंजू का चेहरा जैसे प्रतिशोध की ज्वाला में धधक रहा था. अपराधियों को सजा दिलाने की उसकी लालसा इतनी तीव्र थी की घटना की जानकारी देते वक्त वो चिल्ला कर कह उठी ” इन्स्पेक्टर साहब आप अगर उन दरिंदों को सजा दिला पाते हैं तो ठीक है, अंजू तो उन्हें सजा देकर ही रहेगी. अंजू सिर्फ सीता नहीं है, आधुनिक भारत की चंडी भी है. उन्होंने मेरा बलात्कार कर मेरे अन्दर बरसों से सोये घृणा और प्रतिशोध की अग्नि को प्रज्वलित कर दिया है. ये आग अब उनके मौत के साथ ही ख़तम होगी. मुझे उनकी सजा नहीं उनकी मृत्यु चाहिए”.

भार्गव बाबु पुलिस को बाहर छोड़ कर आये. अंजू को समझाते हुए उसे शांत रहने को कहा. राधा को अभी तक होश नहीं आया था. आधे घंटे तक डोक्टरों ने प्रयास जारी रखा. राधा होश में आ गयी. कबड्डी के फ़ाइनल में राधा नहीं खेल पायी. अंजू ने अपने टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए उसे फ़ाइनल जीताया. कुछ लोगों ने मैदान पर फब्तियां छोड़ी, तो कईयों ने ‘अंजू को इंसाफ दो’ के बैनर से उसका हौसला बढाया.

लड़कों की शिनाख्त कर पुलिस ने उन्हें अरेस्ट कर लिया. अमीर बाप के बिगड़े औलादों ने मानवता के नाम पर जो कलंक मढ़ा था उसका फैसला होना अभी बांकी था. बलात्कार के समय पहने हुए कपड़ों की जांच हो चुकी थी. अंजू और राधा की मेडिकल रिपोर्ट भी बलात्कार की पुष्टि कर रही थी. कोर्ट ने बलात्कारियों को दस साल की सजा सुनाई.

बलात्कारियों को तो सजा मिल गयी, लेकिन क्या समाज इस बात को मानेगा की अंजू और राधा निर्दोष थीं? क्या समाज बलात्कार की शिकार इन लड़कियों के अहम् और सम्मान को ठेस पहुँचाना छोड़ देगा? क्या समाज में इन्हें दुबारा से वही मान और सम्मान मिलेगा.?- इन्ही बातों को सोचते हुए भार्गव बाबु राधा और अंजू को लेकर कोर्ट से बाहर निकले.

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