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नेताजी के अविस्मरणीय शब्द.

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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भारतीय राजनैतिक कोंफ्रेंस, लन्दन, जून १०, १९३३, को सुभाष चन्द्र बोस की अनुपस्थिति में अध्यक्ष द्वारा उनके भाषण को पढ़ा गया. उसी भाषण का हिंदी रूपांतरण. किसी भी तरह की त्रुटी के लिए, माफ़ी चाहूँगा.

हर ऐतिहासिक जन आन्दोलन की नीव, छोटी शुरुआत होती है, और ऐसा ही भारत में भी होगा. हमारा पहला प्रयास, पुरुषों और औरतों के उस जनसमूह को एक साथ लाना होगा, जो बलिदान और वीरता का पर्याय बन सकें. हमारे लक्ष्य, स्वराज,की प्राप्ति के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण है. घडी की सुइयों की परवाह किये बिना, आजादी की दीवानगी में मतवाले, असफलता और मुश्किलों में भी अडिग, हर आंधी का सामना हंस कर करने वाले, और जो अपने कर्म को जीवन का लक्ष्य मानते हुए, अपनी ज़िन्दगी के अंतिम क्षणों में भी, जय हिंद का नारा बुलंद करते रहे.
जब, नैतिक रूप से ये पुरुष और महिलाएं तैयार हो जायेंगे , तब इन्हें अपेक्षित बौधिक प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि वो अपने कार्य के परिमाण को जान सकें. उन्हें अन्य देशों में चल रहे स्वतंत्रता आन्दोलनों का गंभीर और वैज्ञानिक अध्ययन करना होगा, ताकि वो इस बात को जान सकें की अन्य देशों में, परतंत्रता की इस समस्या का समाधान कैसे हुआ, सामान समस्याओं के बावजूद. इसके साथ-साथ भारतीय इतिहास को खंगाल कर उन्हें, साम्राज्यों के उत्थान और पतन के कारणों का वैज्ञानिक और बौद्धिक अध्ययन करना चाहिए. इस ज्ञान से सशस्त्र हो, उन्हें भारत में ब्रिटिश सरकार के कमजोर और मजबूत अंकों का वैज्ञानिक विश्लेषण करना चाहिए, और ब्रिटिश सरकार के सम्बन्ध में भारतियों के कमजोर और मजबूत अंकों का अध्ययन भी आवश्यक है.
जब यह बौद्धिक प्रशिक्षण पूरा हो जाएगा, हमें सत्ता के विजय की कार्यवाही की योजनाओं का स्पष्ट संकेत मिल जाएगा और साथ ही हम ये भी जान पायेंगे की आगे हमें कौन सी योजना बनानी है, जब नया प्रान्त बनाया जाएगा, सत्ता परिवर्तन के बाद. इस प्रकार यह स्पष्ट है की हमें महिलाओं और पुरुषों के उस संगंथान की आवश्यकता है, जिन्होंने अपने जीवन को इस महँ कार्य के लिए न्यौछावर कर दिया है, जिन्हें आवश्यक बौद्धिक प्रशिक्षण प्राप्त है, और जो इस बात को पूर्णतया समझते हैं की शक्ति की विजय से पहले और बाद में उन्हें क्या करना है.
यह इस संगठन का कार्य होगा की, वह विदेशी घोड़े से भारत को मुक्त करे. भारत को स्वतात्न्त्र और संप्रभु बनाने का कार्य भी इसी संगठन को करना होगा. यही वह संगठन होगा जो युद्ध के बाद, भारत का सामाजिक और आर्थिक पुनरुत्थान करेगा. इस संगठन को ही भारत की नयी पीढ़ी को जीवन के संघर्ष से लड़ने का प्रशिक्षण देना होगा. अंतिम, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात, इसी संगठन को भारत को विश्व के स्वतंत्र राष्ट्रों के मध्य उसका स्थान दिलाना होगा.

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