Menu
blogid : 1669 postid : 450

क्या सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है?(लेख)

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
  • 119 Posts
  • 1769 Comments

क्यूँ होता है ऐसा, भारत, हाँ भारत के विषय में जब भी सोचता हूँ, प्रश्नों के मेघों से स्वयं को घिरा पाता हूँ? प्रश्न, कुछ प्रश्न, अनेकों प्रश्न, जिनका कोई उत्तर नहीं. क्यूँ राष्ट्रीयता की भावना लुप्त होती जा रही है? क्यूँ वो ज्वाला जो कभी हमारे सीने में धधकती थी, अब शनैः-शनैः, मद्धिम और बुझती जा रही है? मुझे आज भी याद है, दसवीं की परीक्षा पास ही किया था उस वर्ष मैंने. उम्र कम थी, सिर्फ चौदह वर्ष. उर्जा और राष्ट्रीयता के भावों के पराकाष्ठा पर था मैं. सन १९९९, कारगिल युद्ध का वर्ष. पूरा देश हिंदुस्तान के सैनिकों के साथ था. मेरे शहर में फ़ौज की भर्ती के लिए शारीरिक जांच होनी थी. दरभंगा एरोड्रम, देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत युवाओं का महाकुम्भ का साक्षी बना.
सिर्फ हजार लोगों की आवश्यकता थी. लेकिन लाखों की संख्या में पुरे बिहार से युवाओं का हुजूम उमड़ पड़ा था, अपने देश केलिए जान देने को. मैं भी उनमें से एक था. मेरी तो उम्र भी नहीं थी, न्यूनतम आयु १६ वर्ष और मैं सिर्फ 14 वर्ष का. लेकिन मेरे ह्रदय में देशभक्ति का संगीत रुकने का नाम नहीं ले रहा था. चारों तरह हिंदुस्तान जिंदाबाद, हम आ रहे हैं भारत के नारे, नभ के बादलों को भी झुक कर चलने का आदेश दे रहे थे. मैं मन ही मन भारतवर्ष के युवाओं के जज्बे को देख, कुछ कर गुजरने को प्रेरित हुआ जा रहा था.
अचानक, भीड़ में भगदर मच गयी. अभी कुछ पल पहले जिन युवाओं को सैनिकों की वाहवाही करते सुना था, सैनिकों पर शब्दों के विषबाण बरसाने लगे. युवाओं ने सिर्फ हजार सैनिक चुने जाने का विरोध किया. सैनिकों का चयन स्थगित कर दिया गया.
ये क्या, अभी तक जो कल के सैनिक थे वो आज के जानवर बन गए. पुरे रास्ते, उत्पात मचाते और वन्दे-मातरम के नारे लगाते, युवाओं की टोलियों ने लुट-पाट शुरू कर दिया. लोग इधर-उधर जान बचा कर भागने लगे. पथ से विपथ भारतीय उर्जा ने बहुत उत्पात मचाया उसदिन.
मेरा मन रो पड़ा. क्या यही हैं भारत के भविष्य? युद्ध के आवेग में राष्ट्रीयता की भावना जगती हो जिनके मन में, वो क्या भारत को विश्व गुरु बनायेंगे. क्या इसे ही देशभक्त भारत कहूँ मैं? बिना युद्ध जो हिंदुस्तान के बारे में सोचने से भी हिचकिचाते हैं. क्षणिक देशभक्ति से क्या होगा इस देश का?
इन प्रश्नों ने तो उस समय भी मेरे छोटे से ह्रदय में हलचल मचाई थी. लेकिन अब, अब तो कई प्रश्न उठ गए हैं, इन प्रश्नों से भी बड़े प्रश्न. ऐसे प्रश्न जिनका हल शायद मैं अकेला न ढूंढ़ पाऊं. मेरे स्वयं के स्वाभिमान का प्रश्न, मेरे हिंदुस्तान का प्रश्न. प्रश्न जो हर भारतीय को स्वयं से पूछना होगा. प्रश्न जिसका उत्तर हर भारतीय को ढूँढना होगा. सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में हैं. क्या सच में सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है? नहीं, अब सरफरोशी की तमन्ना हमारे दिल में नहीं हमारी किताबों में है.
अब सिर्फ स्वार्थ पूर्ति की तमन्ना हमारे दिल में है. मेरा बेटा, मेरी बेटी, मेरा भाई, मेरा घर, मेरी नौकरी, मेरे पैसे, मेरे शौक, मेरी कार, मेरी पत्नी, मेरी प्रेमिका, सिर्फ मेरा, मेरा और मेरा. हमारा, कहाँ है वो प्रेम, वो पीड़ा, जो कभी सबके लिए हुआ करता था. सड़कों पर वाहनों से कुचल कर कीड़े-मकोड़ों की तरह मरते लोग, परवाह किसको है? नेताओं के जूतों के बोझ तले दब कर सिसकता आम आदमी, इससे मुझे क्या? अफसरशाही के कोढ़ से पीड़ित हिंदुस्तान, मैं क्यूँ सोचूं इसके बारे में? शिक्षा के नाम पर माँ सरस्वती का हो रहा व्यापार, ये तो हमारी मज़बूरी है. कबतक, आखिर कब तक? कबतक अपने उत्तरदायित्व से मुंह छुपाते फिरेंगे हम? ये देश, ये राष्ट्र, हिंदुस्तान, ये भारत हमारा है. इसके कण-कण को शहीदों ने अपने लहू से सींचा है. क्या इसे यूँही जलता देखें हम?
भूख को देख कर क्यूँ हमारी भुजाएं भगत सिंह को याद कर, धरती का सीना चीर, अन्न के दानों से भूख का वध करने को फरकती नहीं हैं. क्यूँ हमारी स्त्रियाँ, स्वयं को शोषित मानती हैं? क्यूँ आज भारत आधुनिकता की अंधी दौड़ में कहीं खो सा गया है. क्यूँ, जब आज जरुरत है, युवाओं के एक होने की, भारत के अस्मिता को बचाने की, वो विमुख हैं, अपने कर्तव्यों से?
जागो, भारत की स्त्रियाँ जागो! बन जाओ तुम चंडी, लक्ष्मी बाई का नाम लो, अपने ह्रदय को टटोल कर, स्वयं को पहचान लो. तुम हिंदुस्तान की स्त्री हो, तुम अभिमान हो पुरुषों का, तुम स्वाभिमान हो इस राष्ट्र का. इतिहास के पन्नों में सीता से लेकर काली तक का जिस स्वरुप का वर्णन है, वो स्वरुप तुम्हारा ही है. अब समय आ गया है. सिद्ध करदो, तुम्हारे कन्धों को सहारे की आवश्यकता नहीं. औरों को सहारा देने वाली ए भारतीय स्त्री स्वयं को पहचान.
आज चर्चा हो रही है, युवाओं के राजनीति से जुड़ने की. कौन जुड़ रहा है, क्या कभी किसी ने देखा, क्या कभी किसी ने सोचा? नयी बोतल में पुराणी शराब ही तो परोसी जा रही है. कल तक जो चौक-चौराहों पे आवारागर्दी करते थे, वो आज युवा नेता हैं. जिनका दूर-दूर तक शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं वो छात्र नेता हैं. क्यूँ, क्यूंकि आज अभी सकारात्मक उर्जा पहुँच नहीं पायी राजनीति तक. हम डरते हैं, सिर्फ कोसते हैं. नेता ऐसे हैं, नेता वैसे हैं.
आज ज़रूरत है, सरफरोशी की तमन्ना फिर दिल में जगाने की. आज ज़रूरत है, भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे युवाओं के राजनीति में आने की. आज ज़रूरत है, हर भारतीय अपनी सोच बदले. ‘मैं’ के दायरे से बाहर आकर ‘हम’ के बारे में सोचे. परिवर्तन और क्रांति का पहला मूल मंत्र है, शुरुआत, मैंने की, क्या आप मेरे साथ हैं?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to bhaijikahin by ARVIND PAREEKCancel reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh