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मुझे प्यार चाहिए!- “Valentine Contest”

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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जज साहब, मुझे प्रेम चाहिए. वर्षों से न सिर्फ मेरे इस नारी तन का बलात्कार हो रहा है बल्कि मेरे नारी मन पर एक वेहशी दरिंदे ने इतने घाव किये हैं जिसे गिनने के लिए शायद अंकों की संख्या भी कम पड़ जाए. पहले इसने मेरे मन को वश में करने के लिए प्रेम का भ्रम-पाश फेंका और फिर सालों तक मेरे शरीर को नोचने के बाद मुझे टूटे हुए सामन की तरह घर के एक कोने में छोड़ दिया.. मैं पूछती हूँ इसमें मेरा क्या दोष है, मैंने तो हमेशा से प्रेम पर विश्वास किया. और उस प्रेम ने, उस प्रेम ने मेरे साथ ऐसा छलावा किया जिसे जानने के बाद लोग प्रेम को पाप कहने लगेंगे.
मंजरी चीख-चीख कर अपने ऊपर हुए अत्याचार को बयां कर रही थी और मैं खड़ा उसके अंदर धधकती हुई ज्वाला को देख स्तब्ध था. क्या ये वही मंजरी है, जो कभी माउंट बटन कोंवेंट की शान थी? क्या ये वही अप्सरा है जिसे पहली बार देख कर मेरे ह्रदय ने धड़कने के एहसास को जाना था? जो कभी किसी से नहीं डरती थी, जिसकी आँखों में सोखी और माथे पर असीम आत्मविश्वास की झलक मिलती थी. समय, हाँ ये समय ही तो था, जिसके एक अध्याय ने हमारे शहर के सबसे चर्चित प्यार की कहानी लिखी थी और दूसरे अध्याय ने उस कहानी के दर्दनाक अंत को कटघरे में खड़े होकर चीत्कार करते हुए पाया.
सच कहूँ, मैंने कभी ये नहीं सोचा था की मैं अपने जीवन में कानून की पढाई करूँगा. कानून की पढाई कभी से मेरा सपना नहीं था. इतना ही नहीं, मेरा पहला केस मैं मंजरी के लिए लडूंगा ये तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी. मैं तो उसे कब का भूल चूका था. प्रेम के इस दर्दनाक कहानी से कभी मेरा भी साक्षात्कार होगा, सोचा नहीं था. ये कहानी शुरू होती है आज से दस वर्ष पहले जब मेरी उम्र १६ की थी. मंजरी हमारे स्कुल में ही पढ़ती थी. मैं उस वक्त ११ वीं में था और मंजरी नौवीं में. आस-पास घर होने के कारण वो अक्सर मुझे रास्ते में मिल जाया करती. बातें करते हुए हम स्कुल पहुंचते और स्कुल खतम होने के बाद सीधे घर. स्कुल आने-जाने के क्रम में मैं कब उसे मन ही मन चाहने लगा मुझे इस बात का एहसास नहीं हुआ. मैंने इस बात को हमेशा उससे छुपाये रखा. मुझे डर था की कहीं वो मुझे मना न कर दे. वो ठहरी अप्सरा सी सुन्दर और मैं, चिपटी नाक, सांवला रंग, मोटे होंठ, कुल मिलाकर बदसूरत कहा जा सकता था मुझे.
अब आप किसी से प्यार करें और आपके जीवन में खलनायक ना आये तो प्रेम-कहानी कुछ अधूरी सी लगती है. मुझे भी अपनी कहानी अधूरी सी लगती थी जब तक बाबा चौधरी, हाँ यही नाम था उसका. लंबा शरीर, बुलंद भुजाएं, तीखे नैन-नक्श, करिज्मा पर बैठा एक आधुनिक रावण, जो दिखने में जितना सुन्दर था, ह्रदय से उतना ही कुटिल और पापी, ने इसे त्रिकोणीय नहीं बनाया था.
उस दिन शनिवार था. हमारे स्कुल में हर शनिवार खेल प्रतियोगिता होती थी. बच्चों को सफेद पोशाक में स्कुल जाना होता था. मंजरी और मैं साथ में स्कुल को निकले. आज मंजरी ऐसी लग रही थी मानो स्वर्ग से उर्वशी अभी-अभी उतरकर धरती पर आई हो और मेरे साथ-साथ चल रही हो. मैं कभी मंजरी को देखता, कभी सड़क के गढ्ढों को. अचानक से मेरी साईकिल का संतुलन बिगड गया और मैं गिर पड़ा. मुझे गिरता देख मंजरी जोर-जोर से हंस पड़ी. मुझे गुस्सा तो बहुत आया, एक तो चोट लगी है ऊपर से इसे मुझसे चोट के बारे में पूछना चाहिए तो ये हंस रही है. लेकिन मैं कुछ भी नहीं कह सका उससे. कैसे कहता, प्यार जो करता था मैं उससे. अभी मैं उठकर खड़ा भी नहीं हुआ था की बाबा चौधरी हमारे पास आकर रुक गया. अपने रे-बैन के चश्में से अपनी आँखों को आजाद करता हुआ, वो अपनी बाइक से नीचे उतडा.
“क्या हुआ मैडम? आपका बोडीगार्ड गढ्ढे में गिर गया. हा हा हा हा. अरे किस चपडगंजू के साथ घुमती हो? अरे हमें भी कभी मौका दो.”, बाबा ने बाइक से उतरते हुए कहा.
मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन बाबा के लंबे-चौड़े शरीर को देखकर मेरी हिम्मत नहीं हुई की मैं उसे कुछ कहूँ.
“मिस्टर, तुम अपना काम करो. तुम्हें नसीहत देने के लिए किसने कहा है.”, मंजरी तुनकते हुए बोली.
“ओहो, कांफिडेंट. और मॉडर्न भी.”, उसको ऊपर से नीचे तक निहारते हुए वह बोला.
मेरा तो मन कर रहा था की उसका मुंह तोड दूँ लेकिन अपनी असमर्थता को प्रकट करने की मेरी इक्षा नहीं थी उस समय. मैंने मंजरी से चलने को कहा और उसे घूरते हुए वहाँ से स्कुल की तरफ चल पड़ा. स्कुल लेट से पहुँचने के कारण क्लास में शिक्षक से पिटाई भी खाई. लेकिन पिटाई ने मुझे उतना नहीं डराया जितना मैं इस बात से डर गया था की बाबा ने मंजरी की खूबसूरती को देख लिया है. मुझे पता था की अब वो रोज उसके पीछे आएगा और उसे परेशां करेगा, तबतक, जबतक या तो मंजरी हार कर उसकी न हो जाए या फिर वो लोगों से धमकियाँ न सुन ले.
बाबा, शहर का सबसे बदनाम नाम. न जाने क्यूँ फिर भी लड़कियां मरती थी उसपर. मरती भी क्यूँ नहीं, क्या नहीं था उसके पास, गाडी, पैसा और सुन्दर रूप. यही तो चाहिए होता है आजकल की लड़कियों को. न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी तबाह की थी उसने. फिर भी लड़कियां उसके जाल में आ ही जाती थीं. मुझे डर था की कहीं मंजरी भी उसकी बातों में न आ जाए. नहीं, नहीं मंजरी ऐसी नहीं है. और अभी तो उसकी उम्र भी बहुत कम है. लेकिन, संगीता, संगीता भी तो मंजरी के उम्र की ही थी. उसे मैंने कई बार बाबा के साथ घुमते हुए देखा था. चाहे जो हो जाए, मैं मंजरी को बाबा के चक्कर में नहीं फंसने दूँगा. न जाने क्यूँ, पर मुझे ऐसा लगता था की मंजरी भी मुझे पसंद करती थी. तभी तो वो सिर्फ मुझसे ही बात करती थी. नहीं, नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूँगा. मैं खामखा नामुमकिन चीजों के बारे में सोच रहा हूँ. अपने ह्रदय को शांत किया मैंने. और घर को वापस आने के लिए मंजरी के साथ स्कुल से निकला. पुरे रास्ते मैंने कुछ नहीं कहा. मंजरी ने बात करने का प्रयास भी किया लेकिन मैं कुछ नहीं बोला. एक अंजाना डर था, जो मेरे अंदर बैठ गया था.
अगले दिन कुछ भी नहीं हुआ, हम और दिनों की तरह ही स्कुल गए और आये. यही सिलसिला अगले एक हफ्ते तक चला. फिर एक दिन अचानक से एक ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जिसने मेरे मन-मस्तिष्क को बौखला दिया. बाबा अब रोज हमारे साथ-साथ स्कुल जाने लगा. स्कुल से लौटते समय भी हमारी मुलाकात स्कुल के गेट पर हो जाती थी. कभी लाल शर्ट में, कभी काली टी-शर्ट में, कभी रंग्लर की जींस तो कभी फ़्लाइंग मशीन, हर चीज आँखों को अच्छी लगने वाली. कोई भी लड़की उसे देखकर आंह भरने से नहीं बच पाती. और शायद ये मेरे लिए असहनीय था. औरों से तो मुझे कोई मतलब नहीं था लेकिन मंजरी, नहीं-नहीं, बाबा जैसे लड़के से मंजरी जैसी लड़की के सम्बन्ध की कल्पना करना भी पाप है.
होनी को कौन ताल सका है भला. और ये तो एक न एक दिन होना ही था. कम-उम्र मंजरी भी बाबा के झांसे में आ गयी. उसके महंगे कपडे और महंगी गाडी ने इसे भी अपने पैरों पे कुल्हाड़ी मारने को तैयार कर ही लिया.
पता नहीं क्यूँ आज कुछ अच्छा नहीं लग रहा था मुझे. मंजरी आजकल मुझसे कुछ दूर रहने लगी थी. उसने मुझसे बात करना भी कम कर दिया था. मुझे स्कुल में देखते ही वो अपना रास्ता बदल लेती. उसके इस अचानक से बदले हुए स्वाभाव ने मुझे बड़ा विचलित कर दिया. मैं मंजरी के बारे सोचते हुए अपनी दुनिया में खो गया. अचानक से एक आवाज़ ने मुझे सोते से जगाया.
“अरे रोहित, क्या हुआ मंजरी आजकल तेरे साथ नहीं आती? कुछ हुआ है क्या?”, मनोज ने व्यंग्यात्मक हंसी के साथ कहा.
“पता नहीं. उसने पिछले हफ्ते ही मुझसे कहा था की उसके दसवीं के पेपर आने वाले हैं इस लिए वो लेट निकलेगी घर से. मुझे प्रतीक्षा नहीं करने को कहा”, मैंने कहा.
“ओह. लेकिन मैंने तो सुना है की आजकल बाबा की कार से स्कुल आती-जाती है. आजकल बाबा की सबसे लाडली कबूतरी मंजरी ही है. बाबा हजारों रूपये खर्च कर चूका है उसके ऊपर. अभी पिछले हफ्ते ही मोबाईल दिया है उसने मंजरी को गिफ्ट में.”, मनोज के ये शब्द मेरे ह्रदय को छलनी कर गए.
मंजरी, तुम भी वैसी ही निकली. अरे एकबार मेरे से बाबा के बारे में पूछा होता. अब तो बाजार की चकाचौंध में मुझ देहाती की बातें तुम्हें अटपटी ही लगेंगी. ये क्या कर लिया तुमने. हे भगवन, कहाँ हो तुम? इस अबला की रक्षा करने की ताकत दो मुझे. बाबा अच्छा आदमी नहीं है प्रभु, वो मंजरी के जीवन को कुचल कर रख देगा. मैं गुस्से में सीधे मंजरी के पास गया.
“मंजरी, ये क्या सुन रहा हूँ मैं? तुम आजकल बाबा के साथ स्कुल आती-जाती हो. वो अच्छा आदमी नहीं है और उम्र में तुमसे दुगुना है. तुम्हें पता है, उसका काम ही यही है, सुबह उठना और लड़कियों के पीछे घुमना. तुम उसके चक्कर में मत पडो.”, मैंने गुस्से में कहा.
“मुझे सब पता है. तुम्हें समझाने की जरुरत नहीं है. वो मुझे प्यार करता है. वो पहले क्या करता था मुझे इससे कोई मतलब नहीं लेकिन वो अब सिर्फ मुझसे प्यार करता है. और हाँ तुम अपने लिए कोई बंदरिया धुंध लो, क्यूंकि तुम्हारी जोड़ी उसी के साथ फिट बैठेगी.”, मंजरी अपने हुस्न पर इतराती हुई बोली.
मुझे काटो तो खून नहीं. ये क्या कह गयी मंजरी. अरे मुझे प्यार नहीं करना था तो नहीं करती, लेकिन इतने कठोर शब्द. हे इश्वर, मैंने क्या गुनाह किया जो तुने मुझे ऐसी शकल दी. मन कर रहा था की अपनी शकल पर ब्लेड से इतने घाव बना दूँ की इश्वर रहम कर उसे बदलने की मंजूरी दे दे. उस उम्र में इससे ज्यादा नहीं सोच सका मैं. ये तो उम्र का वो पड़ाव था जब मंजरी की हंसी के बाद सारी दुनिया कम लगती थी मुझे. प्यार की अगर परिभाषा कोई पूछता मेरे से तो शायद मैं उसे समझा नहीं पाता लेकिन मैं जानता था की मुझे इश्क हो गया था.
एक तू है मुझसे खफा, खफा सी है,
एक मैं हूँ जिसे तेरे सिवा कोई होश नहीं
तू जला कर बुझाने में यकीन रखती है
एक मैं हूँ जो कहता है, तेरा कोई दोष नहीं

मैं रोना चाहता था, लेकिन आंसू नहीं निकले. किससे कहूँ, क्या कहूँ? ये क्या हो गया, दुनिया ही बदल गयी, मन भारी हो गया मेरा. जीने की चाहत और जीवन के आनंद को भुला बैठा मैं. बार-बार मंजरी के कठोर स्वर मेरे ह्रदय की टीस बढ़ाते. और मैंने निश्चय कर लिया, अब जीवन में कभी किसी से प्यार नहीं करूँगा. अगर किसी को दिल से चाहने का यही सिला मिलता है तो कोई क्यूँ प्यार करे.
इस बाजार में हर सामान बिकता है
इश्क की दूकान में ईमान बिकता है,
लगा लो बोली ए दुनिया वालों,
माँ की ममता और भगवान बिकता है.

देखते ही देखते दो साल बीत गए. इस दौरान मैंने मंजरी को बाबा के साथ कई बार देखा. मुझे आज भी याद है वो दिन जब पास वाले साइबर केफे में मंजरी बाबा के साथ डेट पर गयी थी. मैं भी अपने काम से वाहन पहुंचा था. बाहर बैठा मैं कुछ लिख रहा था. अचानक से वो केफे के अंदर दाखिल हुई. मुझे देखते ही उसके चेहरे पर नफरत के भाव आ गए. नफरत, जिसका मैं पात्र नहीं था. फिर भी न जाने क्यूँ वो मुझसे नफरत करती थी. मंजरी अंदर केबिन में चली गयी. मेरे सामने से मेरी मल्लिका किसी और की खुशबू बनाने को गुजरी और मैं बेबस देखता रह गया. कुछ देर बाद वो बाहर आई, साथ में बाबा भी था. बाबा उसे बाहर रिक्शे पर बिठा कर अंदर आया और मुझे देखते ही अहंकार में भर सोफे पर बैठ गया.
“ मन्नू भाई, साली बहुत गरम है. आज ५१ पप्पियाँ ली हैं. उम्म्म्म्म्म..”, अपने होंठों पर ऊँगली फिरते हुए और मेरी तरफ देखते हुए बाबा ने कहा.
आप मेरी जगह होते तो क्या करते. शायद झगरते लेकिन मैं कुछ नहीं कर सका. मैं डरपोक जो था. और हीन भावना से ग्रस्त एक १८ वर्ष का सीधा-सादा लड़का. क्या करता मैं, न मेरी औकात थी और न इश्वर ने मुझे इतनी ताकत दी थी की मैं उस रावण का सामना करता. एक हारे हुए इंसान की तरह उसके इस कमीनेपन का जवाब दिए बिना मैं चुपचाप वाहन से बाहर आ गया. वाहन सीधा घर पहुँच अपने कमरे में जाकर खूब रोया मैं. कोई कैसे मंजरी के बारे में ऐसा कह सकता है? और मैं कुछ न कर सका. मैं क्यूँ हूँ, तुने मुझे क्यूँ बनाया भगवन. अगर बनाया तो मुझे लड़ने की ताकत देते. तुने तो गरीबी, बदसूरत चेहरा और धूमिल आत्विश्वास देकर मुझे अपाहिज बना दिया.
अचानक पता नहीं कहाँ से प्रेरणा मिली मुझे. लेकिन किसी ने कहा जरुर, रोहित तुझे जीवन के सच के बारे में समझा रहा हूँ. तुझमे वो हिम्मत है की तू हर चीज पा सके. उठ, आगे बढ़ और कर सामना सच्चाई का. तुने हरिवंश राइ बच्चन की वो कविता नहीं सुनी, लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालोन की कभी हार नहीं होती. धीरे-धीरे एक नयी उर्जा का संचार हुआ मेरे अंदर और मैं आत्विश्वास से भरता गया. निचे आकार मैंने मंजरी को फोन लगाया. रिंग होते ही मेरी धडकनें बढ़ गयी. लेकिन अपने ह्रदय-गति को काबू में लाते हुए मैंने उसे केफे की सारी घटना सुनाई और कहा,
“मंजरी, अभी तुम्हारी उम्र कम है. तुम दुनिया की चकाचौंध में खो गयी हो. लेकिन याद रखना, जब सबसे हार जाओ, मेरे पास आना, मैं तब भी तुम्हें इतना ही चाहूँगा”, इतना कहकर मैंने फोन रख दिया.
उसके बाद मैंने न कभी उसे देखा और न कभी देखने की कोशिश की. इस घटना के एक साल बाद मुझे पता चला की एक १७ साल की लड़की एक ३२ साल के लड़के के साथ भाग गयी. दोनों ने शादी भी कर ली. बाद में मैं ये भी जाना गया की लड़की कोई और नहीं मंजरी थी और लड़का बाबा था.
देखते ही देखते समय बीतता गया और मैं २६ साला का एक आकर्षक युवक बन गया. कानून की पढाई खत्म करने के बाद मैं शहर के कोर्ट में ही प्रक्टिस करने लगा. अभीतक मैं बड़े अधिवक्ताओं के लिए ही काम करता था. अपने ऑफिस में बैठा, मैं किताबों से कुछ ढूंढने की कोशिश कर रहा था. अचानक किसी ने अंदर आने की इजाजत मांगी. मैंने बिना ऊपर देखे ही आने वाले को बैठने का इशारा किया. उसके बैठते ही मैंने उससे आने का कारण पूछा. जैसे ही मैंने अपनी नज़रें उठाई और ऊपर देखा तो सामने मंजरी को देख चौंक गया. शायद उसने मुझे नहीं पहचाना था. तभी तो उसके चेहरे के भाव नहीं बदले थे.
“कहिये, क्या कर सकता हूँ मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?”, अपने ह्रदय में उठ रहे प्रश्नों पर विराम लगते हुए मैंने कहा.
“जी, मेरा नाम मंजरी है. मैं अपने पति से तलाक चाहती हूँ. मेरी मदद कीजिये प्लीज. यहाँ का कोई वकील मेरे केस को नहीं लड़ना चाहता. मैं अपने पति पर ६ साल तक जबरन मेरा बलात्कार करने का आरोप भी लगाना चाहती हूँ.”, मंजरी रुआंसा होते हुए बोली.
“मंजरी, तुमने मुझे पहचाना नहीं शायद. मैं रोहित हूँ, हम साथ मैं पढाते थे, याद है”, मेरे मुंह से अचानक निकल गया.
इतना सुनते ही मंजरी की आँखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ उमड़ पड़ा. वो रोती रही, रोती रही, मैं चुप-चाप उसे देखता रहा. क्या करता मैं, उसके आँखों से ढलके हुए आंसुओं को सहेजने का हक तो उसने वर्षों पहले ही छीन लिया था मुझसे. वो ही तो थी जिसने मेरे प्यार की बाटी को अपनी नफरत की फूंक से बुझा दिया था. क्या करता मैं? कुछ देर मौन रहा.
“मंजरी, प्लीज रोना बंद करो. ये बताओ की क्या हुआ है? और तुम्हारी हालत ऐसी कैसे हो गयी? बाबा तो अमीर आदमी है, फिर तुम्हारे कपड़ो से गरीबी कैसे झाँक रही है.”, मैं अपने आप को रोक नहीं सका और कहता चला गया, “मेरे प्यार को तुमने दौलत के तराजू से तुला तो बाबा का पलड़ा तुम्हें भारी लगा था, क्या हुआ बाबा तुम्हें प्यार नहीं करता?”
“रोहित, क्यूँ जलाते हुए. मैं तुम्हारी मुजरिम हूँ. तुमने सही कहा था मैं नादान थी, जब तक मुझे अपने अस्तित्व का एहसास हुआ, सब कुछ खतम हो गया था. बाबा की बातों में आकार हमने भाग कर शादी तो कर ली, लेकिन उसके बाद कुछ अच्छा नहीं हुआ. दो साल तो मैं जैसे-तैसे जी गयी. लेकिन हवस की आग जब ठंढी हुई तो सब तबाह हो चूका था. जब मैंने पिंजरे से आजाद होना चाहां तो कोई नहीं था मेरे साथ. होता भी कैसे, सबका साथ तो मैं खुद छोड़ आई थी. पिछले ६ वर्षों से मेरा रोज बलात्कार हो रहा है, मैं कब तक मौन रहती? मना करती तो गालियाँ मिलती थी, यातना का दौर शुरू हो जाता. एक कमसिन जान, क्या करती रोहित? मैं लुटती रही, आँखें बंद किये, अपने नसीब पर खून के आंशु रोती रही.”, अपने आँखों को पोंछते हुए उसने कहा.
“मैं तो शायद यहाँ कभी नहीं आ पाती अगर मिनी ने मुझे नहीं बताया होता की तुम वकील बन गए हो. और तुमने भी तो कहा था, जब मेरे पास कोई नहीं हो, मैं तुम्हारे पास आ जाऊं. मैं आ गयी हूँ रोहित, मुझे इस कैद से मुक्ति दिला दो”, सुबकते हुए मंजरी ने कहा.
ये जीवन भी अजीब है, कैसे-कैसे दिन दिखाती है. मंजरी की आँखों से बहते हुए आंसुओं को मैं मन नहीं कर सका और मैंने उसके केस को लड़ने के लिए हामी भर दी.
आज उसी केस की सुनवाई थी. आज एक नारी ने चीख-चीख कर अपने ऊपर हुए अत्याचारों को अदालत के सामने रखा था. अदालत ने नारी की आवाज़ भी सुनी और बाबा को सजा के साथ-साथ मंजरी के भरण-पोषण का भर उठाने को भी कहा गया. लेकिन गलती किसकी थी, मेरी, बाबा की, या फिर मंजरी की? और जीता कौन था, मैं, मंजरी या फिर बाबा? इन्हीं सब बातों को सोचता मैं अपने टेबल से सामान उठा कोर्ट से बाहर निकला. मंजरी ने मुझे पीछे से आवाज़ दी. मैंने मुड़कर देखा तो वो दौड़ती हुई मेरे पास आ रही थी. वो मेरे नजदीक आकार रुक गयी.
“मंजरी अब तुम आजाद हो. जी लो अपनी जिंदगी, पहले भी जिया था, आज भी जी लो”, इतना कहकर मैं चला पड़ा. बिना पीछे मुड़े, आँखों में आ रहे आंसुओं को पोंछते हुए मैं बढ़ता रहा……

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