हर मोड़ पर मिलते हैं, मिलकर वो बिछड़ जाते हैं, बात करते हैं पास आने की, दूर हमसे फिर वो क्यूँ जाते हैं.
शाम की तनहाइयों में, आज भी उनकी इबादत है, रात की खामोशियों में, हमें भूल जाना उनकी आदत है. क्या करूँ इस तनहा रूह का, बन गयी ये हमारी किस्मत है, हाथ थाम कर हरबार छोड़ दिया उसने, ये सितम उनका नहीं, ये तो इश्क की पुरानी फितरत है.
न जाने क्यूँ हर बार फिर भी, हम नाम उनका ही लिए जाते हैं रिसता है लहू सीने से, हम फिर भी जीए जाते हैं.
गुज़ारिश है तुझसे मेरी इतनी ए मालिक, मेरे ज़ख्मों से रिश्ते लहू का उन्हें एहसास न हो, न गुजरे एक भी दिन ऐसा मेरी ज़िन्दगी में, जिसमे उनसे एक और बार मिलने की प्यास न हो.
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments