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वो पहली अद्भुत होली थी – holi contest

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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सज-धज कर तैयार जनकपुर, बाट जोहे भगवन की, लोग-बाग़ सब पलक बिछाए, प्रतीक्षा करे अवध के सम्मान की.

सीता को छेड़े हैं सखियाँ, कानों में बोले है बतियाँ सीता सुकुमारी सखियों संग राम की बनाये नव-छवियाँ.

अवध और जनकपुर मिलन की अद्भुत बेला आई है, होली के रंगों संग देखो फागुन भी ललचाई है.

रामलला के एक दरस को सीता के नयन तरसे हैं काहे तुमको देर हुई प्रभु, नयन सीता के रह-रह कर बरसे हैं.

ढोल नगारे की गुंजों ने, प्रभु के आने के संकेत दिए पहुँच महल के द्वार प्रभु बोले, तुम कहाँ हो सिये.

सीता संग होली खेलन को, आये हो तुम बड़ी दूर से, हम सखियों से क्या भूल हुई प्रभु, लगते हो बड़े क्रूर से.

रंग, गुलाल, फूलों से तनिक, स्वागत हमको करने दो अपने इस मनोहारी रूप को, हमें नयनों में भरने दो

राम मध्य में बैठ गए, अब आओ मुझे तुम कर दो लाल आओ कर लो इक्षा पूरी, मन में रहे न कोई मलाल.

प्रभु स्पर्श ने सखियों को अपने में ही बाँध लिया था असाध्य जो कल तक, सखियों ने उसे साध लिया

लेकर विदा सखियों से, प्रभु सिया से मिलने गए आज जनकपुर में खिलेंगे, फागुन के अध्याय नए

जाओ खेलो सखियों संग होली, सिया की याद तुम्हें कब आती है सिया ह्रदय की टीस का क्या है, सखियों की ठिठोली तुम्हें अब लुभाती है.

सिया ह्रदय में बसती है, सिये तुम राम का सम्मान हो अब हठ छोडो सिया सुकुमारी, मैं शरीर तुम प्राण हो.

कहाँ लगाऊं रंग प्रेम का, देखो तनिक तुम अपने मुख को इन्द्रधनुष बन कर आये हो, तुम न जानो मेरे दुःख को.

नयन तुम्हारे दरस को प्रभु कब से तरस रही हैं ह्रदय-समुद्र से प्रभु मेरे प्रेम-नदी बरस रही है.

मुख का क्या है प्रिय, आज है कल मिट जाएगा मेरे ह्रदय में, सिया, नाम तेरा ही प्रथम आएगा.

प्रभु के आलिंगन से विभोर हो, सीता खोई थी, भरमाई थी प्रभु-रंग में रंगी सीता को देखने, अप्सराएं धरा पर आई थी.

फागुन के रंगों का क्या है, आज है कल चला जाएगा मुख पे लोगों के हे सीते, नाम तेरा मुझसे पहले आएगा.

सिया-राम जयघोष से उसदिन, मिथिला नगरी डोली थी, अवध और जनकपुर मिलन की, वो पहली अद्भुत होली थी.

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