मैं कवि नहीं हूँ!
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मैं कहानियां लिखता हूँ,
कभी बचपन, कभी बुढ़ापा
कभी जवानियाँ लिखता हूँ
मैं कहानियां लिखता हूँ.
कभी अपनी, कभी पराई
कभी दुआ, कभी दुहाई
जीवन की निशानियाँ लिखता हूँ.
मैं कहानियां लिखता हूँ.
कभी नारी मन की वेदना
कभी पुरुष की नवचेतना
कभी धरती की पुकार
कभी लिखता हूँ संसार
शर्म, हया और रवानियाँ लिखता हूँ
मैं कहानियां लिखता हूँ.
कभी लोगों की बातें
कभी नयी सौगातें
कभी नेताओं की जातें
कभी उम्मीदों की रातें
कभी भूख की आग
कभी काशी-प्रयाग
कभी भ्रष्ट लोक-तंत्र
कभी मोक्ष का मंत्र
कभी बेईमानियाँ लिखता हूँ
मैं कहानियां लिखता हूँ
कभी सूर्य का ताप
कभी मेरे अपने पाप
कभी सपनों की रस-परियां
कभी बहती कल-कल नदियाँ
कभी अपनी कभी आपकी
परेशानियां लिखता हूँ
मैं कहानियां लिखता हूँ.
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