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सुप्रीम-कोर्ट में जनता दरबार-२

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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कल अचानक फिर से वही दृश्य आँखों में तैर गया. कल, मैंने फिर एक सपना देखा! मैंने फिर से सुप्रीम-कोर्ट के दरबार में सरकार और नौकर को आमने सामने देखा. जी हाँ, सरकार, और हम नौकर, दोनों खड़े थे आमने-सामने. सरकार के सभी बाजुओं को नौकरों के प्रश्नों के उत्तर देने थे. राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम-कोर्ट ने भारतीय इतिहास में एक ऐसे अध्याय को जोड़ा जो शायद अबतक असंभव सा प्रतीत हो रहा था. १५ अगस्त १९४७ के बाद से ही राष्ट्र की अस्मिता के साथ हो रहे सामूहिक बलात्कार से आजिज होकर, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के सभी प्रतिनिधियों को कलकत्ता के इडेन-गार्डेन स्टेडियम में जनता से सम्मुख होने का आदेश दिया.
एक तरफ जनता थी, आक्रोशित, रुष्ट, भयभीत, और कुंठित, और दूसरी तरह थे, जनता के प्रतिनिधि, हाँ हमारे अपने प्रतिनिधि, जिनपर स्वयं से ज्यादा विश्वास कर हमने अपनी और अपने राष्ट्र की जिम्मेदारी उन्हें थमा दी. फिर क्या था, वो बन गए, हमारे हितों के रक्षक. कर दिया उन्होंने हमें असुरक्षित. बो दिया हमारे मन में एक दुसरे के प्रति द्वेष. बनाया कश्मीर को अपना हथियार, बन गए नक्सलवाद के पोषक और आतंकवाद के सहायक. संविधान में वर्णीत आरक्षण को ब्रह्मास्त्र बना, हुन्दुस्तान के ह्रदय में बसे राष्ट्र-प्रेम का वध कर दिया. कभी स्वयं को सर्व-धर्मावलम्बी बताया, तो कभी स्वयं को हिन्दू बताया, कभी मुसलमानों के मन में हिदुओं के प्रति द्वेष का प्रत्यारोपण किया, तो कभी हिंदुत्व को आतंकवाद करार दिया. जब जनता अपने कार्यों से मुक्त हुई तो पाया की उसका हिंदुस्तान खो गया. भ्रष्टाचारियों और राष्ट्र के दुश्मनों ने हिंदुस्तान को इतना कमजोर कर दिया की हर पडोसी देश उसे आँख दिखने लगा. कब-तक, आखिर कब-तक चलता ये सब. बोफोर्स से लेकर २जी तक झेला. अब सहना मुश्किल था नौकरों के लिए. समय आया और एक ज्वार-भाटा फूटा. शुरुआत हुई जंतर-मंतर से और शायद अंत इस जनता-दरबार में हो.
इसी आशा से मैं भी सुप्रीम-कोर्ट के इस अनोखे कदम को देखने एडेन-गार्डेन पहुंचा. मैदान को बीच से दो भागों में बाँट दिया गया. एक तरफ जनप्रतिनिधि बैठे हुए थे, तो दूसरी तरफ जन-समूह अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था. हर व्यक्ति आज यही सोच कर आया था ” आज अपने सवालों का जवाब लेकर ही जाऊँगा”. इसी बीच सुप्रीम-कोर्ट के सम्मानीय न्यायधीशों का मैदान में प्रवेश हुआ. मैदान के बीचों-बीच उनका आसन लगाया गया. जजों ने दिन को ऐतिहासिक बताते हुए प्रक्रिया शुरू की. दोनों पक्षों को अपने-अपने पक्ष रखने का अवसर दिया गया. सवाल-जवाब कुछ ऐसे थे.
जनता: जज-साहब, मैं अनपढ़ हूँ. मुझे पढ़ना नहीं आता. बड़ी आशा थी, छुटकी पढ़-लिख जायेगी तो नाम करेगी. स्कुल भेजा, हमेशा घर आकर कहती, बाबु स्कुल में पढाई नहीं होती. मास्टर बाबु या तो आते नहीं हैं, अगर आते हैं तो दो-तीन कप चाय पीकर चले जाते हैं. एक दिन अचानक, स्कुल का खाना खाकर कर बीमार पर गयी और दम तोड़ दिया. मेरी एक ही संतान थी. दुष्टों को सजा दिलाने की कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ. वैसे भी जज-साहब मुजरिम एक हों तो सजा मिले. सरकार द्वारा चलाये जा रहे हर कार्यक्रम में इतना भ्रष्टाचार व्याप्त है की बच्चे शिक्षित होने की बजाय हिंसक होते जा रहे हैं. मैं नेता जी से पूछना चाहता हूँ की ये भ्रष्ट शिक्षा-अधिकारीयों पर लगाम क्यूँ नहीं लगाते? ये क्या लगाम लगायेंगे. इन्होने तो भारत की शिक्षा प्रणाली में इतना बड़ा छेद कर दिया है की उसे बंद करना नामुमकिन सा हो गया है.
एक अनपढ़ के मुंह से इतनी समझदारी भरी बातें सुन नेता जी के पसीने छुट गए. उन्होंने तो सोचा था, एक लाचार सा आम-आदमी उनके सामने कहाँ ठहर पायेगा. लेकिन यहाँ तो उल्टा हो गया. आम-आदमी के एक आम प्रश्न ने नेता जी को आम का उच्चरण भुला दिया. माथे पर आरहे पसीने को बार-बार पोंछते हुए नेता जी ने अपने यारों के तरफ देखा. कल-तक जो साथ थे, घपले और घोटालों के बाद फार्म हाउस की पार्टियों में जिन्होंने गुलछर्रे उडाये थे. जो कल-तक जान देने की बात कर रहे थे, आज जान पर बनते ही, नज़र फेर गए. किसी ने सच ही कहा है “नेताओं पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए.”
नेता जी: “अहेम-अहेम”. आप हमपर भरोसा रखें. सरकार अपना काम पूरी इमानदारी से कर रही है. ये विपक्ष की सरकार के खिलाफ साज़िश है.
इतना कहकर नेता जी चले गए. वैसे भी क्या जवाब देते वो? अपने कार्यकाल में तो उन्हें अपने क्षेत्र की याद भी नहीं आई थी. भूखी-प्यासी और आतंकवाद का दंश झेल रही जनता के प्रश्नों का उत्तर देना अगर आसान होता तो फिर कतार में खड़े इन जन-प्रतिनिधियों की गर्दन अभी नीची नहीं होती. अब दुसरे प्रश्न की बारी आते ही नेताओं के खेमे में मातम सा दृश्य उत्पन्न हो गया. अपने आम-आदमी से मिलने की घडी आते ही सभी एक-दुसरे को आगे करने लगे. तभी अचानक से एक वृद्ध से लगने वाले जेंटल-मैन ने आगे आकर प्रश्न का उत्तर देने का वचन दिया.
जेंटल-मैन-नेता: पूछिये जो पूछना है. (उसने अपनी मुर्दे जैसी आवाज़ में कहा). मैं एक इमानदार आदमी हूँ. मेरे रहते कुछ भी गलत नहीं हो सकता.
जनता ने इस बार एक समझदार व्यक्ति को प्रश्न पूछने के लिए भेजना उचित समझा.
समझदार व्यक्ति: चलिए, जब आप कह रहे हैं तो मैं मान लेता हूँ की आप इमानदार हैं. ज़रा ये बताइए की ओसामा के मारे जाने के बाद आप अब क्या करने वाले हैं?
जेंटल-मैन-नेता: हम पाकिस्तान के साथ बात कर रहे हैं. हमने उनपर दवाब भी बनाया है. जल्द ही इसके परिणाम आने के आसार हैं.
समझदार व्यक्ति: क्या ख़ाक बात कर रहे हैं? आपका पडोसी आपकी आँखें निकालने की बात करता है और आप बात करने पर उतारू हैं. पिछले ६० वर्षों से आप क्या कर रहे हैं? ओसामा पाकिस्तान में मारा गया. अमेरिका उसपर दवाब बना रहा है, और आप उसके दवाब में आ रहे हैं. ९३ के बम धमाकों की गूंज आप भूल गए होंगे. लेकिन उस धमाके की टीस हमारे दिल में अभी भी उठती है. ताज होटल का नरसंहार आज भी ह्रदय में भय का संचार करता है. इन नरसंहारों से बचता हूँ तो अपनों के हाथों मारा जाता हूँ. और आप गद्दी पर बैठ कर इसे क्रिकेट मैच की तरह देख रहे हैं और आनंद उठा रहे हैं.
जेंटल-मैन-नेता: हम अपना काम पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं. और हमें आशा है की कार्य-समिति के बैठक के बाद कोई निर्णय अवश्य निकलेगा. हम आपकी भावनाओं की क़द्र करते हैं. आप शिक्षित और समझदार हैं. समझदारी से काम लीजिये.
समझदार व्यक्ति: समझदारी का ही काम कर रहा हूँ. अभी-तक मैंने आपका कोलर पकड़ कर जूतों से नहीं मारा है. जब आप ही चाहते हैं की मैं आपसे ऐसा बर्ताव करूँ तो, मैं क्या कर सकता हूँ इसमें. हमने बीते समय में अंग्रेजों की ग़ुलामी की, इस बात को दुनिया तक पहुँचाने वाले खेल महोत्सव को अपने यहाँ आने का न्यौता दिया. जब महोत्सव के तयारी की बारी आई तो आपने अपने लाडले कलमाड़ी को कार्यभार दिया. जिसने हिंदुस्तान की अस्मिता को बेचने में कोई कसर नहीं छोड़ा. लुट-खसोट का ये सिलसिला इतना भयावह हो गया की, इसी माननीय सुप्रीम-कोर्ट ने हस्तक्षेप कर, कोमन-वेल्थ में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार पर सरकार को फटकार लगायी. कलमाड़ी तो अन्दर गया. लेकिन जब तुम्हारी गर्दन फंसी तो तुमने जांच में व्यवधान उत्पन्न करना शुरू कर दिया. अब क्या करोगे? २जी घोटाले में खरबों रुपयों लुट-खसोट के बाद भी तुम ये मानने को तैयार नहीं की तुम अब-तक की सबसे भ्रष्ट सरकार हो. तुम अपने कुकृत्यों के चरम पर पहुँच गए हो और अब जनता ने स्वयं ही सारे फैसले करने का निर्णय लिया है. अरे तुम क्या पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारोगे, तुम तो सम्बन्ध बिगाड़ना चाहते हो. एक तरफ कहते हो की तुम्हारा इण्डिया विश्व की महाशक्ति बन रहा है और दूसरी तरफ तुम पाकिस्तान से भय खाते हो. अरे भय खाओ भी क्यूँ नहीं, तुम स्वयं भ्रष्टाचारी और हत्यारे जो ठहरे. अरे हमने तुमसे प्रश्न क्या पूछने शुरू किये तुमने हमारी इमानदारी पर ही उंगली उठानी शुरू कर दी. अरे बहुत हुआ, तुम निर्लज्ज हो मैं नहीं. या तो सीधे-सीधे हमारे सारे प्रश्नों का उत्तर दो या फिर हम स्वयं कार्यवाही करेंगे. गन-तंत्र को जन-तंत्र बनाने के लिए जनता अब कुछ भी कर सकती है.
जेंटल-मैं-नेता: देखिये, जनता को अपना काम करना चाहिए. सरकार के कार्यों में जनता के हस्तक्षेप से उसके कार्य पर नकारात्मक असर पड़ता है. इस तरह से सरकार पर दवाब बनाने से दोषी बच जायेंगे.
समझदार व्यक्ति: क्या ख़ाक बच जायेंगे. दोषी तुम हो, तुम सहित मेरे सामने बैठे ये सारे भेडिये. जिन्होंने पिछले ६० वर्षों से हमें इस भ्रम में रखा की वो भी इंसान हैं. तुम सत्ता-लोभियों की वजह से गरीबों को ६० वर्ष बीत जाने के बाद भी रोटी, कपडा और मकान नसीब नहीं हुआ. बेरोजगारी और महंगाई से तंग लोगों ने आत्महत्या करना शुरू कर दिया. तुमने एक तरफ दिल्ली-मुंबई-पुणे-हैदराबाद बनाया तो दूसरी तरफ झुग्गी-झोपड़ियों से भी गरीबों को बाहर फेंक दिया. तुमने तो पूरी शिक्षा-पद्धति ही बदल दी, और लोगों को वास्तिवकता से दूर कर दिया. जज-साहब मैं इन भेडियों से प्रश्न-पूछ कर अपना समय नष्ट नहीं करना चाहता. आप जो चाहे निर्णय सुना सकते हैं. लेकिन इतना सुन लें, अगर आपका निर्णय अबकी बार जनता के हित में नहीं आया तो जनता अपना निर्णय स्वयं लेगी. हम और प्रतीक्षा नहीं कर सकते.
न्यायधीशों ने दोनों पक्षों को बड़े ध्यान से सुना. निर्णय की घडी अब आ गयी थी. जनता के रोष से सुप्रीम-कोर्ट भली-भाँती परिचित थी. सुप्रीम-कोर्ट भी विश्व-इतिहास में एक अनोखे अध्याय की शुरुआत करने जा रही थी. सुप्रीम-कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाया.
कभी तो फूल खिलेंगे चट्टानों पर,
कभी तो इनको भी रोना आएगा.
कभी तो प्रेम बिकेगा दुकानों पर,
कभी तो प्रेम-फसल लहलहाएगा.
सभी जनप्रतिनिधियों को अभी से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम करना होगा. संविधान में संशोधन कर, भ्रष्टाचारियों और राष्ट्र-विरोधी तत्वों की सजा बाधा कर आजीवन कारावास या सजा-ए-मौत की जाती है. साथ ही सभी को ये सख्त हिदायत दी जाती है की वो भ्रष्टाचार में साथ न दें. भ्रष्टाचार और राष्ट्र-विरोधी किसी भी गतिविधि या किसी भी तरह की संलिप्तता को जघन्यतम अपराध की श्रेणी में रखा जाता है. सभी जन-प्रतिनिधियों तब-तक १५ दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है. मैं निर्णय से बहुत खुश था. घर आकर इस अद्भुत घटना को टी.वी पर देखने लगा. देखते-देखते कब आँख लग गयी पता नहीं चला.
सुबह उठा. अपने आप को बिस्तर पर पाया. कुछ भी नहीं बदला था. क्यूंकि मेरा वो सुन्दर सपना टूट गया.

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