वो चाहते हैं मैं उनके मन की बात करूँ विभिन्न तर्कों से मेरे मतान्तरण का प्रयास होता है, धन की आवश्यकता और उसके महत्त्व को समझाने का उनका प्रयास सभ्य समाज के मुखौटे को दिखाकर कहना तुम्हारी सोच से दुनिया नहीं चलती तुम्हें दुनिया की सोच के साथ चलना है मैं द्वंद्व में फंस जाता हूँ अचानक अंतर-आत्मा से एक आवाज़ आती है इंसान अपनी सोच को हिमालय कि ऊंचाई तक पहुंचा सकता है कौन क्या सोचता है इससे तुम्हारा क्या सरोकार इंसान कि तो फितरत ही है अपने स्वार्थ कि पूर्ति कोई और तुम्हारे स्वार्थ को क्यूँ सिद्ध होने देगा अपने स्वप्नों को पंख देने का अधिकार इश्वर ने दिया है तुम्हें भरो एक उड़ान नभ कि ऊंचाई मापने के सुनहरे अवसर को पहचानो गगन के दूसरे छोड़ पर मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूँ.
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