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नव-चेतना पुकारती!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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आसमान कों फूंक में उडाया नहीं तो क्या,
पर्वतों कों ठोकर से हिलाया नहीं तो क्या

कहने वाले कहेंगे तुझमे इतना बल कहाँ
करने वाले करेंगे, दूसरा कोई कल कहाँ

संभल जाओ कि कारवां मेरा तैयार है,
मेरे ह्रदय का मानव क्रांति-पथ पर सवार है

भ्रष्ट होती सरकारें और लोग सुन लें
ये नव-भारत कि हुंकार है, ललकार है

बदलेगा नहीं कुछ, अंधकार ये ना जाएगा
क्यूँ मानू तेरी बात, नव-चेतना परिवर्तन लाएगा.

मालुम है मुझे, राह कठिन है, लंबा सफर है
अकेला कहाँ हूँ मैं, साथ मेरे उसकी नज़र है

नव-चेतना पुकारती, आओ मिलकर साथ चलो
नव-चेतना पुकारती, आओ राष्ट्रीय रंग में ढलो.

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