Menu
blogid : 1669 postid : 632

मैं हिन्दू हूँ!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
  • 119 Posts
  • 1769 Comments

हे भारत, मैं तुझमें हूँ,
तू मुझसे है, मैं तुझसे हूँ,
हिंद, हिन्दू और हिंदुस्तान
इनसे मैं रहूँ क्यूँ अनजान
इतिहास मेरा मुझको
ये बार-बार बतलाता है,
अस्तित्व और हिंदुत्व की
परिभाषा मुझे समझाता है
है ये धरा जब से,
जयगाथा है ये तब से
न जाने क्यूँ फिर भी,
भारत समझ न पाता है,
स्वयं के इतिहास को भूलकर,
नव-भारत अब इतराता है.
कह दिया मैंने अगर, मैं हिंदू हूँ,
साम्प्रदायिकता का कलंक लगाते हो,
अन्य पंथों कों मानने वालों कि,
तुम प्रशंशा करते ना अघाते हो.
आदि से अनादी तक जिसने मुझे जीना सिखाया
कैसे भूलूं उस धर्म कों जिसने मुझे इंसान बनाया.
राम कि पौरुषता तुम क्या झुठलाओगे,
कृष्ण कि चपलता से बच के निकल ना पाओगे.
शक्ति कि शक्ति से टकराना बच्चों का खेल नहीं,
महादेव के तांडव और त्रिशूल का मेल नहीं.
है धर्म सनातन मेरा,
मैं हिंदू हूँ,
है खड़ा अकड कर विश्व जहाँ,
उसका मैं केंद्रबिंदु हूँ.
पश्चिम से लेकर दक्षिण तक विश्व मुझे गाता है,
काले-गोरे हर शख्स कों मीरा का कृष्ण भाता है.
तुम करो बात मुझे खेद नहीं,
मेरा तुमसे मतभेद नहीं.
मैं हिंदू हूँ, मैं हिंदू था
मैं हिंदू बना रहूँगा.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh