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इश्क कहता है कि शायर बन जाऊं!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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मेरे अल्फाजों कों तुने ठुकराया,
इश्क कहता है कि शायर बन जाऊं
मेरे ज़ज्बातों कों तुने ठोकर में उड़ाया,
वो कहते हैं कि थोडा कायर बन जाऊं.

कुछ खास नहीं है मेरे पास बस प्यास है,
ताउम्र तुझे देखने कि आस है
है तेरे तसव्वुर का मुझे इन्तेजार,
तू इस दिल-ए-नादान के लिए खास है

ना कर यूँ मुझसे नफ़रत ए हुस्न-ए-वफ़ा,
ना अपने दिल कों दे तू यूँ दगा
तेरे तबस्सुम की मुझे तलाश है,
तू कहे तो घायल बन जाऊं

कुछ ना दिया मैंने तुझे दर्द-ए-दिल के सिवा,
और तुझे मैंने दिया है ज़फा
माफ करना तेरी फितरत थी कभी,
बस एक और बार तू निभा दे वफ़ा

तेरे अश्कों कों अपनी आँखें दूँ मैं,
तेरे कांपते लबों कि कसम है,
है निखिल बदनाम यहाँ,
तू कह दे तो मैं तेरा बन जाऊं.

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