आहत हूँ और थोडा परेशान हूँ, भारत के हालातपर हैरान हूँ, चुप हैं सभी, हर शब्द खामोश है, सिसकियों में खो गया आक्रोश है, नर आज बस आप में है खो गया, देखो वह शांत हो कर सो गया, चाणक्य कि धरा पे ये कैसा तूफ़ान है, आज चंद्रगुप्त स्वयं से अनजान है, निश्चय नहीं है और नहीं संताप है, इस राष्ट्र में अब राष्ट्रधर्म पाप है, दुर्योधन और कंश के कर तले दुग्ध-पान कर रहा कलयुगी सांप है, उन्मुक्तता और नंग्नता बन गयी पहचान है, राष्ट्रप्रेमी देखो आज बन गया मेहमान है, आहत हूँ और थोडा परेशान हूँ, भारत के हालात पर हैरान हूँ, कृष्ण और राम के नाम पर हो रहा घमासान है, देखो भारत आज स्वयं के अस्तित्व से अनजान है, कभी था खड़ा जो विश्व-पथ पर लौ लिए, हर सभ्यता के हैं जिसने गरल पिए, सब है सहा और सब है जानता, अहिंसा कों है धर्म अपना मानता, ना जाने फिर क्यूँ बिक रहा यहाँ ईमान है, ना जाने फिर क्यूँ राज कर रहा यहाँ बेईमान है, गांधी बिक रहा है गलियों में, चौराहों पर, और पहरा है लगा बाजुओं पर, निगाहों पर, अब है समय पृथ्वी राज के आने की, हिंद के ललाट पर विजय तिलक लगाने की, गर सुन रहा है मुझे तू आसमान तो फैला कर और कर तू मेरा गुणगान, भारत आज फिर वापस आएगा, आज फिर विश्व इसकी जयगाथा गायेगा. खादी में लिपटे लोग सुन लें, ये मैं नहीं ये मेरा अभिमान है, हाँ भारत मेरा स्वाभिमान है, सम्मान है.
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