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गुनाहों का अफसाना!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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आईने में एक शख्स  अनजाना सा लगा,
चेहरा उसका कुछ जाना-पहचाना सा लगा,
इश्क-ए-जूनून कि तश्वीर थी शायद
मोहब्बत और गुनाहों का अफसाना सा लगा

जाने क्यूँ, ना जाने क्यूँ तुम्हें अब भी याद करते हैं,
मिल जाओ कहीं किसी मोड़ पर, फरियाद करते हैं,
कुछ दर्द मुझे हुआ, कुछ तेरा दिल भी दुख होगा,
बेवफाओं कि भीड़ में एक आशिक दीवाना सा लगा.

छलक आये आंसू जो तुझे भूलने कि बात की,
कदम लडखडाए जो तुझसे दूर जाने कि बात की,
ना हम पास आये, ना तुम्हें दूर जाने कि सजा दी,
ये तकरार-ए-इश्क एक बहाना सा लगा.

खनक तेरे पाजेब कि मेरे इश्क का खिताब है,
ए मेरे हुस्न-ए-अदा, तू लाजवाब है
ना चाह मुझे, तेरी हसरत में जी लूँगा,
कहानी-ए-इश्क, आंसुओं का फ़साना सा लगा

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