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मौत मेरी प्रेयसी!

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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मौत मेरी प्रेयसी, मुझे गले लगाती है, जिंदगी एक ख़ाक, हरदम रुलाती है, 
लोग कहते हैं शब् है, शबनम है, मुकद्दर है, इबादत है और गम है, हर मोड़ पर फिर क्यूँ ये इठलाती है, मेरी हर टीस पर क्यूँ मुस्कुराती है, मौत मेरी प्रेयसी, मुझे गले लगाती है,
जिंदगी एक ख़ाक, हरदम रुलाती है, थामा जो दामन इसका, कुछ पलों के वास्ते सोचा चलेगी साथ मेरे, हर कठिन रास्ते, झटक कर हाथ मेरा दूर खड़ी हो गयी, मेरे आगोश से निकलकर औरों कि बाहों में खो गयी मौत पेरी प्रेयसी, मुझे गले लगाती है, जिंदगी एक ख़ाक, हरदम रुलाती है, 
उम्र कहाँ मांगी थी, चंद साँसो कि गुज़ारिश की, दिया इसने सफर और आंसुओं कि बारिश दी, जिस्म मेरा मिटटी का है, कहकर इसने ठुकराया, क्यूँ ना चाहूँ उसे जिसने मुझे गले लगाया मौत मेरी प्रेयसी, मुझे गले लगाती है, जिंदगी एक ख़ाक, हरदम रुलाती है. 
वो देती है मुझे अपने आगोश में आखरी पनाह, दिया सुकून उसने मुझे और माफ किये हैं गुनाह, क्यूँ ना फिर मैं ये जिंदगी उसे दूं , क्यूँ ना फिर मैं उसके बाहों में मरूं, मौत मेरी प्रेयसी, मुझे गले लगाती है, जिंदगी एक ख़ाक, हरदम रुलाती है,

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