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स्याही, स्याह है मेरी, हृदय श्वेत है,
स्याही समंदर है, और कागज़ मेरा रेत है
हर बार लिखता हूँ, हर बार मिटाता हूँ
अपनी स्याही से मोहब्बत,मैं निभाता हूँ
मेरी स्याही आज स्याह होना चाहती है,
इस नयी क्रांति का गवाह होना चाहती है,
लिखना चाहती है ये बदनाम गलियां
कुछ अनसुने किस्से और नादान कलियाँ,
रौशनी से भरी, लापरवाह वो दुनिया
और कोने में खड़ी बिलखती नन्ही मुनिया,
लिखना चाहती है वो गुमनाम किस्से,
कतरे हुए स्वप्न और हँसते हुए बच्चे,
कुछ कल का इतिहास और क्रांति कि बातें,
कुछ आज कि आधुनिकता और बेशर्म रातें,
कुछ मेरी मज़बूरी और रिश्तों का यथार्थ,
कुछ संगीन जुर्म और दानवी स्वार्थ
भिगोना चाहती है ये, हर सफ़ेद लिबास,
लिखना चाहती है ये, नवभारत का इतिहास,
राष्ट्र का गीत उकेरना चाहती है ये,
बेईमानी से मुँह फेरना चाहती है ये,
माँ कि ममता का करना है इसे एहसास,
प्रेम में डूबकर बुझाना चाहती है ये प्यास
स्याही लाल है आज, कुरुक्षेत्र की तस्वीर बनाएगी,
लिखेगी दास्ताँ भारत की, नवचेतना लाएगी
भूख पर भिगोयिगी ये आँखें और हुंकार भरेगी
लोकतंत्र को डसने वाले राक्षसों से लड़ेगी,
मिटाएगी ये द्वेष हिंदुस्तान के ह्रदय से,
लाएगी नव-कहानी, प्रेम और विनय से,
मेरी स्याही की बात अब जग ये सुनेगा
मेरी स्याही के शब्दों को विश्व गुनेगा,
मेरी स्याही हर अंतर्मन में नाद भरेगी ,
मेरी स्याही हर क्षण सिंहनाद करेगी,
मेरी स्याही आज स्याह होना चाहती है,
इस नयी क्रांति का गवाह होना चाहती है,
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