मैं कवि नहीं हूँ!
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करता हूँ तेरी बंदगी खुदा कि तरह
लेता हूँ तेरा नाम दुआ कि तरह
ना जाने फिर भी क्यूँ मिलता नहीं खुदा
ना जाने फिर भी क्यूँ लगती नहीं दुआ
हर शख्स जो गुजरता है तेरे इबादत-खाने से
भर देती तू झोलियाँ उसकी इश्क के आशियाने से
एक मेरी ही बंदगी तू हरदम भुला देता है
मेरे खुदा मेरे इश्क कों, क्यूँ ज़हर पिला देता है
मेरा ही इश्क है, कि तू है खुदा बन बैठा
ना की होती गर बंदगी, तुझे कौन खुदा कहता
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