मैं कवि नहीं हूँ!
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हाल-ए-दिल अब जुबान से बताया नहीं जाता
ज़ख्म-ए-दिल गैरों से सुनाया नहीं जाता
मेहरबान रूठ कर सिमटा है, खुद के सीने में,
परेशां दिल अब बिकता है, सावन के महीने में,
नज़र तो फिर भी अक्स को छुपा लेता है,
ये दिल है जो हर बात जाता देता है,
तबस्सुम और इश्क की पुरानी रंजिश है,
मोहब्बत तो चुभन को, हवा देता है,
इश्क को भरे बाज़ार दिखाया नहीं जाता,
सनम को दर्द देकर, मुस्कुराया नहीं जाता
कहाँ है इश्क वो मेरा, मैं यहाँ तनहा,
कहाँ है ज़ख्म वो गहरा, कौन हूँ, मैं हूँ कहाँ,
मेरी किस्मत में नहीं तू है, दिल-ए-नादाँ को समझाया नहीं जाता
नहीं तू है, नहीं मैं हूँ, तेरा एक नाम है की भुलाया नहीं जाता
हाल-ए-दिल अब जुबान से बताया नहीं जाता
ज़ख्म-ए-दिल गैरों से सुनाया नहीं जाता
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