मैं कवि नहीं हूँ!
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एक तेरा नशा है, चढ़ता है तो उतरता नहीं.
एक ये जो पी है, चढने का नाम नहीं लेती
शराब तो फिर भी खरीद कर पीते हैं लोग.
ये इश्क, हाँ इश्क, क़त्ल करने का दाम नहीं लेती
एक तेरी वफ़ा है, के वो मरता भी नहीं.
एक तेरा करम है, वो लड़ता भी नहीं,
घुट-घुट के जी रहा है वो, और कुछ कहता भी नहीं.
एक वो जो वहां है, कुछ सुनता ही नहीं
एक मेरा वेहम है, जो हटता ही नहीं,
एक तू बेरहम है, जो डरता भी नहीं,
है करता वो मोहब्बत, और कुछ करता भी नहीं,
हम बसाये बैठे हैं उन्हें आँखों में,
एक वो है जो पढ़ता भी नहीं
एक तेरी अदा है, आँखों से हटता ही नहीं,
वो जो हुस्न है, के जंचता ही नहीं
दिल को तो फिर भी समझा दूँ,
ये तो रूह है जो आराम नहीं लेती
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