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फिर भी हमसे बहूत दूर हैं !

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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ये कैसा है अंजाम मेरे इश्क का
पास हैं वो फिर भी बहूत दूर हैं
उनकी आँखों से बहते हैं आंसू
और हम ग़मों में चूर हैं

होंठों पर है उनके नजाकत
आँखों में शोख शरारत
करते हैं ओ हमसे मोहब्बत
फिर भी हमसे बहूत दूर हैं

बाजुओं में बिखरते हैं मेरे
साँसों में पिघलते हैं देखो
हैं वो मालिक मेरी धडकनों के
फिर भी हमसे बहुत दूर हैं

न रहे हम अब तो आशिक
न ही कहता कोई अब दीवाना
पिघलते हैं हम साँसों में उनके
फिर भी हमसे बहुत दूर हैं

गज़ब रंग लायी कहानी
दो लफ़्ज़ों की जुबानी
वफ़ा को कहें बेवफा वो
अश्क बनकर रह गए बस पानी

अब भी हम खुले आसमान में
ढूंढ़ते हैं उन्हें हर शमा में
बसते हैं वो मेरी इन रंगों में
फिर भी हमसे बहूत दूर हैं

ये कैसा है अंजाम मेरे इश्क का
पास हैं वो फिर भी बहूत दूर हैं
उनकी आँखों से बहते हैं आंसू
और हम ग़मों में चूर हैं

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