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डरता हूँ कहीं हमसे कोई शरारत न हो जाए
मैं कवि नहीं हूँ!
119 Posts
1769 Comments
बिखड़े बिखड़े ये बदल और तेरी बिखड़ी जुल्फें
डरता हूँ कहीं हमसे कोई शरारत न हो जाए
रुखसार पर तेरे है शोख तबस्सुम
आँखों में हया की लाली है
छू कर गुजरने वाली तुझे हर हवा
हुई आज देखो मतवाली है
बिखड़ी बिखड़ी ये बारिश की बुँदे जो तेरे लबों पर फिसल रही हैं
डरता हूँ कहीं आज क़यामत न हो जाए
दीद में अपने तेरे हुस्न को बसा लूँ
फलक पे तेरे नाम को तारो से सजा दूँ
थाम लूँ तेरी बाहों को हर पल के लिए
बाहों में तुझे लूँ और सब भुला दूँ
मीठा मीठा सा ये दर्द मोहब्बत का और तेरे गेसुओं की महक
डरता हूँ कहीं दूरियों से शिकायत न हो जाए
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