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इश्क में अब भी अपने रवानियाँ तो बहुत हैं

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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मेरी ज़िन्दगी में कहानियां तो बहुत हैं
है कमी मेरे पास शब्दों की
इस शहर में जवानियाँ तो बहुत हैं
है कमी यहाँ बस अपनों की

कभी ग़म भी देखे, कभी खुशियों की बारात आई
कभी देखि हमने दिवाली, तो कभी ज़िन्दगी मातम साथ लाइ
नज़र में मेरी निशानियाँ तो बहुत हैं
है कमी तो अब बस अश्कों की

कभी हँसता हूँ, कभी हंसाता हूँ
कभी खुद को तो कभी तुझको बुलाता हूँ
न तू है परेशां आजकल, न दिल मेरा ही अब दुखता है
ये तो दिल है मेरा जो रोके न फिर भी रुकता है
करने को तेरे साथ शैतानियाँ तो बहुत हैं
है कमी तो बस अब सपनों की

कभी सपनों में तुझे देखते थे, अब है तू नज़र के सामने
कभी करते थे बातें बगावत की, और कहते थे हाथ मेरा थाम ले
इश्क में अब भी अपने रवानियाँ तो बहुत हैं
है कमी तो बस सुर्ख लम्हों की

मेरी ज़िन्दगी में कहानियां तो बहुत हैं
है कमी मेरे पास शब्दों की
इस शहर में जवानियाँ तो बहुत हैं
है कमी यहाँ बस अपनों की

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