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बारिश, आह ये बारिश

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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बारिश, आह ये बारिश
वाह, ये बारिश
याद दिलाती है
कुछ बीता हुआ बचपन
और वो दर्पण
मन का
तन को, भींगोती ये बारिश
वो स्कुल से लौटना
गली से होकर
और सरपट दौड़ती
मेरी सायकिल
मदमस्त, अल्हड सा अंदाज
पानी की बूंदों का
और घुटनों तक भरे पानी
के बीच से निकलती
मेरी सायकिल मानो
जहाज हो
समंदर की लहरों को चीरती
छींटे उड़ाती,
और बलखाती हुई मेरी सायकिल
बारिश, आह ये बारिश
वह, ये बारिश
याद दिलाती है मुझे
घर का वो आँगन
और वो छत
टिप-टिप, गिरती बूंदें
और छत पर खड़ा मैं
घंटों चलने वाली मेरी बात-चीत
बारिश की बूंदों के साथ
और अचानक से
थम जाती थी, बारिश
शब्दों की कभी जरूरत नहीं पड़ी
दिल ही दिल में,
आँखों ही आँखों में
मैंने भी समझा, उसने भी समझा
आह ये बारिश,
वाह, ये बारिश
गिरते मोतियों से कहना
थम जाओ, अभी थम जाओ
कुछ देर की ही तो बात है
बरस लेना तुम,
जब वो मेरे साथ हो
उनकी छुअन को, मेरी छुअन तक
पहुँचाना तुम बूंदों के संग
हम भींगेंगे, तेरी बूंदों के संग
और तुम सराबोर हो जाना,
बन जाना, प्रेम-रंग, प्रेम-रंग
आह ये बारिश
वाह, ये बारिश
याद दिलाती है मुझे
दोस्तों संग मस्ती की
सड़क पर दूर तक पसरा सन्नाटा
और चलती हुई कुछ पर्छाइयाँ
कभी हंसती, कभी खिलखिलाती
एक दुसरे में झिलमिलाती वो
पर्छाइयाँ
हाथों में भरकर वो बारिश की बूदें,
एक-दुसरे पर उड़ाती वो
पर्छाइयाँ
दोस्त, बचपन और
यौवन की
याद दिलाती ये बारिश,
आह ये बारिश,
वाह, ये बारिश…..

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