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स्मृतियाँ

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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रघु भाई मिले थे,
मिलते ही यादें ताजा हो गयी
एक इंटरनेट कैफे था
वहीँ हमारे स्कुल के पास
हम रोज वहां जाते
चैटिंग-वेटिंग करते,
कभी याहू तो कभी होटमेल
फेसबुक और ट्विटर का
तो दूर-दूर तक निशान नहीं था,
इंटरनेट कैफे भी जवान थी,
और वहीँ पास की चाय दूकान
के मंगनू जी, भी जवान थे
हम ने जवान होना ही शुरू किया था
मैंने सोचा की ये कैफे
क्या सोच रहा होगा,
समय कितनी जल्दी बीतता है,
कभी मैं भी जवान था
मेरे पास ग्राहकों की
लाइन लगी होती थी
इंटरनेट, फोन, ठंढा
सब एक ही दूकान में,
चाय वाले का घर तो
मैं ही चलाता था
इन लड़कों ने बहुत मदद की
मुझे अपने अस्तित्व को समझने में
आज ये आया है
मेरे पास,
शायद इसे भी तलाश है
उसकी जिसकी तलाश मुझे है
मैंने तो इनको जवान होते देखा है
कल मैं इनकी जरुरत था
आज ये मेरी जरूरत हैं
बुढा जो हो गया हूँ मैं
हाँ शायद यही सच था
वो पुराना, कल-आज में
ढहने वाली ईमारत
बूढी हो चली थी
शायद मैं भी बूढा हो जाऊं
बूढा होना और मृत्यु
यह तो ध्रुव सत्य है
सब नश्वर है,
किसी चीज से मन न लगाओ
मेरे मस्तिष्क ने मुझसे कहा
मैं भी बातें ख़तम कर चल दिया
लेकिन एक प्रश्न था,
मेरे हृदय का प्रश्न मुझसे
क्या बिना यादों से मन लगाए
स्मृतियों को टटोले
कोई जी सकता है क्या.

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