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कफनचोर

मैं कवि नहीं हूँ!
मैं कवि नहीं हूँ!
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सन्नाटा था, और अँधेरा होने
को था
कुत्तों का रोना किसे रास आता है
वो सो चूका था
आखरी नींद
साँसों ने साथ छोड़
दिया था
और वो निढाल परा था
शांत हर गम
से दूर
निश्चिन्त हो
अपनी अंतिम यात्रा
की तयारी कर रहा था
पास परिजन
विलाप कर रहे थे
आह! कितना करूँ दृश्य था
मन चीत्कार उठे
अश्रुओं की धार
ने धरती को तर
कर दिया
लेकिन कुछ लोगों के
मन में कुछ और है
वहीँ कुछ षड्यंत्र
हो रहा है
कफ़न की नीलामी
का बंदोबस्त कर
रहा है कोई
किसी के मन में
उसके मरने से
नाच रहा है मोर
कोई उतारू है
बनने को कफनचोर

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